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अन्तिम निवेदन पाठक ! हमने ऊपर जिन दो महापुरुषों का संक्षेप में वर्णन किया है उन्हीं पुण्यात्माओं का जीवनविस्तार इस कुमारपाल चरित्र में है। इसको. अच्छी तरह पढ़िये और अपनी आत्मा को निर्मल करिये । हर एक समाज और देश की उत्कृष्ट सम्पत्ति उसके आदर्श पुरुष ही है । मनुष्य जीवन को उन्नत करने के लिए महात्माओं का पवित्र जीवनचरित्र ही एक सर्वोत्तम साधन है । जिस समाज और देश को, अपने पूर्वकालीन समर्थ पुरुषों के प्रचण्ड सामर्थ्य का ख्याल नहीं है, उनके सुकृत्यों का अभिमान नहीं है और उनकी आज्ञा का पालन नहीं है, वह समाज और देश कभी उन्नति पर नहीं पहुंच सकता । इसलिए, प्रिय जैनबन्धुओ ! ऐसे महात्माओं के जीवनचरित्रों को पढ़कर आप अपने पूर्वजों के गुणों और सुकृत्यों को अपने हृदय में स्थापन करो, उनकी पवित्र आज्ञाओं का पालन करो और गये हुए जैन-धर्म के गौरव को, अपने पुरुषार्थ द्वारा एक दफह फिर पीछा ला कर, जगत् को उसका सर्वश्रेष्ठत्व बतला
दो!
अन्त में, इस चरित्र के लेखक स्नेहास्पद श्रीयुत मुनिवर ललितविजयजी महाराज का मैं उपकार मानता हूँ कि जिनके प्रसंग से, इस प्रस्तावना द्वारा मुझे महापुरुषों के गुणानुवाद करने का यह सुअवसर मिला। वीर सं० २४४० (वि० सं० १९७०)
- मुनि जिनविजय आश्विन कृ० ५ जैनउपाश्रय, महेसाणा (उत्तर गुजरात)
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