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प्रकरण [४]
[ पूज्य आचार्य म. श्री कोतिसागरसूरीश्वरजी महाराज ने राधनपुर के कतिपय भाइयों द्वारा फैलायी गई भ्रमणा का जो स्पष्ट और सचोट प्रतिकार उपरोक्त पर्चे एवं पुस्तिका द्वारा किया, इसी तरह शासन मान्य सुविहित परम्परानुसारी प्रणाली के अनुसार स्वप्नों की उपज को देवद्रव्य में ले जाने की शास्त्रीय मान्यता रखने वाले गीतार्थ पू. आचार्यादि महापुरुषों ने भी राधनपुर के रतिलाल प्रेमचन्द आदि भाइयों के उस पर्चे का उत्तर स्पष्ट एवं सचोट रीति से देकर शासनमान्य सुविहित शास्त्रीय प्रणाली को जो पुष्टि प्रदान की है, उसके लिए उन सुविहित महापुरुषों की अपूर्व एवं अनुपम शासन रक्षा की हार्दिक लगन तथा स्वप्न की आय को देवद्रव्य में ही ले जाने की शास्त्रानुसारी प्रणाली को अखण्ड बनाये रखने की भावना की जितनी उपबृहणा (प्रशंसा) करें उतनी कम है।
राधनपुर के पर्चे का जबाव देने वाले तथा उसका सचोट प्रतिकार करने वाले अभिप्राय जिन जिन सुविहित महापुरुषों ने प्रकट किये हैं और जो पू. आ. म. श्री कीर्तिसागरसूरीश्वरजी म. श्री की ओर से प्रकाशित पुस्तिका में प्रकाशित हुए हैं, वे यहाँ उद्धृत किये जा रहे हैं। [ये अभिप्राय वि. सं. २०२२ में व्यक्त किये गये हैं।]
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स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य ]
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