SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आपकी तरफ से ता. ६.९-६६ को प्रकाशित असल ठहराव ता. १-११-६६ को मेरे हाथ में आया। पढ़कर बहुत दुःख हुआ। क्योंकि आपके पर्चे में राजनगर साधु सम्मेलन के नाम से हलाहल झूठ वाला लेखन बाहर पड़ा है। मैंने स्वयं पट्टक मंगवाकर पढ़ा है । उसमें ११ मुद्दों पर चर्चा हैं । दूसरा मुद्दा देवद्रव्य सम्बन्धी है; वह इस प्रकार है: कलम . -'प्रभु के मन्दिर में या मन्दिर के बाहर, चाहे जिस स्थान पर प्रभु के निमित्त से जो जो बोली बोली जाय वह सब देवद्रव्य गिना जाय।' १ प्रश्नः- (१४) स्वप्न किस कारण से आये ? उत्तर:-भगवान् गर्भ में पधारे इसलिए १४ स्वप्न आये। २ प्रश्नः-पालना किसका ? उत्तरः-त्रिशला का नहीं ? नंदिवर्धन का नहीं ? परन्तु प्रभु का पालना है। . उल्टे मार्ग पर चलने वाले को जो पाप होता है उससे अनेक गुना पाप उल्टो बात रखने वाले को लगता है। यह तो उत्सूत्र प्ररूपणा कही जा सकती है । आगे चलकर श्री आत्मारामजी का जो मन्तव्य बताया है वह भी उनके साहित्य को असत्य ठहराता है । क्योंकि अमृतसर में स्थानकवासी साधु अमरसिंहजी ने १०० प्रश्न पूछे हैं। उनके उत्तर आत्मारामजी महाराज ने दिये हैं और उनके शिष्य लक्ष्मीविजय जो महाराज ने उनका संग्रह किया है । आचार्य वल्लभसूरिजी ने 'ढुंढक हितशिक्षा' पुस्तक के पृष्ठ ८४ पर उनको स्वप्नद्रव्य, देवद्रव्य । [79
SR No.002500
Book TitleSwapnadravya Devdravya Hi Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
PublisherVishvamangal Prakashan Mandir
Publication Year1984
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy