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में इस बात का सख्त प्रतिकार करने का अवसर प्राप्त हुआ था। उस समय हमारी शुभनिश्रा में श्री जैन शासन के अनुरागी श्रीसंघ ने प्रस्ताव करके राधनपुर में स्वप्नों की आय को देवद्रव्य में ले जाने का निर्णय किया था। इसके पश्चात् तो समस्त राधनपुर श्रीसंघ में सर्वानुमति से स्वप्नों की आय देवद्रव्य में ही जाती है।
परन्तु पू. पाद आत्मारामजी महाराजजी जैसे शासनमान्य सुविहित शिरोमणि जैन शासन स्तम्भ महापुरुष के नाम से ऐसी कपोलकल्पित मनघडन्त बातें फैलाई जाती हैं, यह सचमुच दुःख का विषय है। उनके द्वारा रचित. 'गप्प दीपिका समीर' नाम के ग्रन्थ में से एक उद्धरण नीचे दिया जा रहा है जो बहुत मननीय और मार्गदर्शक है।
स्थानकवासी सम्प्रदाय की आर्या श्री पार्वतीबाई द्वारा लिखित 'समकित सार' पुस्तक की समालोचना करते हुए पू. पादश्री विजयानन्दंसूरीश्वरजी महाराज ने स्वप्न को आय के विषय में जो स्पष्टीकरण किया है उससे स्पष्ट होता है कि 'स्वप्न की उपज देवद्रव्य में ही जाती है।'
यह पुस्तक पू. पाद आत्मारामजी म. श्री के आदेश से उनके प्रशिष्यरत्न पू. मुनिराज श्री वल्लभविजय महाराजश्री ने सम्पादित की है, जो बाद में पू. आ. म. श्री विजयवल्लभसूरि म. श्री के नाम से प्रसिद्ध हुए।] _ 'स्वप्न की आय देवद्रव्य में ही जाती है।
पू. पाद श्री आत्मारामजी महाराज का शास्त्रमान्य एवं सुविहित परम्परानुसार स्पष्ट अभिप्राय ।
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स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य ]
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