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विजयकनकचन्द्र सूरीश्वरजी महाराज ने देने की कृपा की है, इसे हम हमारा सौभाग्य समझते हैं । साथ ही सिद्धहस्त लेखक विद्वद्वर्य पू. मुनिराज श्री पूर्णचन्द्र विजयजी महाराज ने इस पुस्तक की सुन्दर और बहुत ही उपयोगी प्रस्तावना लिखकर हमें उपकृत किया है।
पूज्य आचार्यदेवश्री ने मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश आदि हिन्दी भाषी क्षेत्रों में विचरण कर अगणित उपकार किये हैं और हिन्दी साहित्य के सृजन द्वारा भी हिन्दी भाषी जनता पर अपना प्रभाव अंकित किया है। उस हिन्दी साहित्य को प्रकाशित करने का लाभ भी हमें मिला है । पूज्यपाद आचार्यदेव श्री के स्वर्गारोहण के पश्चात् यह द्वितीय हिन्दी 'प्रकाशन हो रहा है।
हिन्दी भाषी प्रदेशों के श्रीसंघों से हमारी यह प्रार्थना है कि वे इस पुस्तक के वाचन-मनन द्वारा देवद्रव्य विषयक सनातन सत्य को समझें, स्वीकारें और सन्मान दें। इसी शुभ भावना से इस पुस्तक का प्रकाशन किया गया होने से हमारा प्रयास तो प्राथमिक रूप से सफल हो गया है फिर भी सब संघ इसे स्वीकार करेंगे तो हमारा प्रयास विशेष सफल होगा।
आश्विन सुदी १०
मन्त्रीगण श्री विश्वमंगल प्रकाशन मन्दिर,
पाटण (गुजरात)