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प्रभुजी की भक्ति निमित्त हुए कार्य के लिए पहनायी जाती थी; इस कारण उसकी बोली की रकम भी देव का ही द्रव्य गिना जाता है । सब प्रकार की मालाओं के लिए ऐसा ही समझना । तथा सं. १९९० के साल में अहमदाबाद में साधु सम्मेलन हुआ था । उसमें भी इस सम्बन्ध में प्रस्ताव हुआ है । उस प्रस्ताव में इस द्रव्य को देवद्रव्य ही माना गया है ।
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भावनगर, श्रावण सुदी ६
लि. आचार्य महाराज श्री विजयप्रतापसूरिजी म. श्री की तरफ से देवगुरु भक्तिकारक सुश्रावक अमीलाल रतिलाल योग्य धर्मलाभ वांचना ।
यहाँ धर्मप्रसाद से शान्ति है । आपका पत्र मिला । समा`चार जाने | आपने १४ स्वप्न, घोडियां पारणा तथा उपधान की माला की बोली का घी किस खाते में ले जाना। इसके विषय में मेरे विचार मंगवाये । ऐसे धार्मिक विषय में आपकी जिज्ञासा हेतु प्रसन्नता है । आपके यहाँ चातुर्मास में आचार्यादि साधु हैं तथा वेरावल में कुछ वर्षों से इस विषय की चर्चाएँ, उपदेश, विवारविनिमय चलता ही रहता है। मुनिराज इस विषय में दृढ़तापूर्वक घोषणा करते हैं कि वह द्रव्य, देवद्रव्य ही है । वे शास्त्रीय आधार से कहते हैं, अपने मन से नहीं । शास्त्र की बात में श्रद्धा रखने वाले उसे स्वीकार करने वाले भवभीरु आत्माएँ उनकी बात को उसी रूप में मान लेती है ।
द. : 'चरणविजयजी का धर्मलाभ'
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स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य ]