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पालीताना साहित्य मन्दिर, ता. ५-८-८४ गुरवार
पू. आ. म. श्री विजय भक्तिसूरीश्वरजी म. की तरफ से । मु. वेरावल श्रावक अमिलाल रतिलाल योग्य धर्मलाभ । आपका पत्र मिला। निम्नानुसार उत्तर जानिए :
(१) उपधान.की माला का घी देवद्रव्य के सिवाय अन्यत्र नहीं ले जाया जा सकता।
(३) चौदह स्वप्न तथा घोडियाँ-पारणा का घी भी देवद्रव्य में ले जाना ही उत्तम है। इन्हें देवद्रव्य में ही ले जाना धोरी मार्ग है । अहमदाबाद के मुनि सम्मेलन में भी यही निर्णय हुआ है कि इसे मुख्यमार्ग के रूप में देवद्रध्य ही.माना जाय । इत्यादि समाचार जानना । देवदर्शन में याद करना। .
लि. विजयभक्तिसूरि (दः स्वयं)
(४)
पावापुरी, सु. १४ - पू. परम गुरुदेव श्रीमद् विजय रामचन्द्र सूरीश्वरजी म. की तरफ से देवगुरु भक्तिकारक सुश्रावक अमीलाल योग धर्मलाभ । तारीख १० का आपका पत्र मिला । उत्तर में ज्ञात करें कि स्वप्नद्रव्य, पारणा, घोडियां इत्यादि श्री जिनेश्वर देव को उद्देश्य करके घी की बोलियां बोली जाती हैं उनका द्रव्यशास्त्र के अनुसार देवद्रव्य में ही गिना जाना चाहिए। इससे विपरीत
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[ स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य