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[२] स्वप्नों की आय का द्रव्य, देवद्रव्य ही हैं ! पूज्यपाद सुविहित प्राचार्यादि महापुरुषों का शास्त्रानुसारी महत्वपूर्ण प्रदेश
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विक्रम संवत् १९६४ में पू. पाद सुविहित शासन मान्य गीतार्थ आचार्य भगवन्तों का शास्त्रानुसारी स्पष्ट एवं दृढ़ उत्तर यही प्राप्त हुआ कि स्वप्नों की आय को देवद्रव्य ही माना जाय और उसमें जो भी वृद्धि हो वह भी साधारण खाते में न ले जाते हुए देवद्रव्य में ही ले जाई जाय । इसके पश्चात् पुनः वि. सं. २०१० में इसी महत्त्वपूर्ण प्रश्न के सम्बन्ध में वर्तमानकालीन समस्त तपागच्छ के श्वे. मू. पू. संघ के पूज्य सुविहित शासन मान्य आचार्य भगवन्तों के साथ पत्र-व्यवहार करके उनके स्पष्ट एवं सचोट निर्णय तथा शास्त्रीय मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए वेरावल निवासी सुश्रावक अमीलाल रतिलाल ने जो पत्र-व्यवहार किया और जो उन पू. पाद आचार्य भगवन्तों के उत्तर प्राप्त हुए वे 'श्री महावीर शासन' में प्रसिद्ध हुए । उन्हें पुस्तकाकार प्रदान करने हेतु अनेक भव्यात्माओं का आग्रह होने से तथा वह साहित्य चिरकाल तक स्थायी रह सके इस दृष्टि से पुनः उन्हें प्रकाशित किया जा रहा है ताकि आराधक भाव में रूचि रखने वाले कयाणकामी आत्माओं के लिये वह उपयोगी एवं उपकारक बने ।
(१)
अहमदाबाद, श्रावण सुदी १२
परम पूज्य संघ स्थविर आचार्यदेव श्रीमद् विजयसिद्धिसूरीश्वरजी महाराज सा० आदि की तरफ से -
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[ स्वप्नद्रव्य देवद्रव्य .