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( २ ) पू. आ. म. श्री हेमचन्द्रसूरि महाराजश्री की कुमारपाल महाराजा ने स्वर्ण-कमलों से पूजा की थी, ऐसे अक्षर कुमारपाल प्रबंध में है । तथा धर्मलाभ 'तुम्हें धर्म का लाभ मिले' इस प्रकार दूर से जिन्होंने हाथ ऊंचे किये हैं, ऐसे पू. श्री सिद्धसेन सूरिजी म. को विक्रमराजा ने कोटि द्रव्य दिया ।' 'इस गुरु पूजा रूप द्रव्य का उस समय जीर्णोद्धार में उपयोग किया गया था । ऐसा उनके प्रबन्ध आदि में कहा गया है । इस विषय में बहुत कहने योग्य है । कितना लिखें.... । (हीर प्रश्न : प्रकाश ३ : पेज १९६)
उपरोक्त प्रमाण से स्पष्ट है कि पू. आ. म. श्री विजयहीर सूरीश्वरजी महाराज श्री जैसे समर्थ गीतार्थ सूरिपुरन्दर भी गुरुपूजन के द्रव्य का उपयोग जीर्णोद्धार में करने का निर्देश करते हैं । इससे स्वतः सिद्ध हो जाता है कि गुरुपूजा का द्रव्य देवद्रव्य ही गिना जा सकता है ।
इस प्रसंग पर यह प्रश्न होता है कि- गुरुपूजन शास्त्रीय है कि नहीं ? यद्यपि इस प्रश्न के उद्भव का कोई कारण नहीं है क्योंकि उपरोक्त स्पष्ट उल्लेख से ज्ञात होता है कि पूर्वकाल में गुरुपूजन की प्रथा चालू थी तथा नवांगी गुरुपूजन की भी शास्त्रीय प्रथा चालू थी । इसीलिए पू. आ. म. की सेवा में पं. नागणिवर ने प्रश्न किया है कि 'पूर्वकाल में इस प्रकार के गुरुपूजन का विधान था या नहीं ?' उसका उत्तर भी स्पष्ट दिया गया है कि, 'हाँ परमार्हत श्री कुमारपाल महाराजा ने गुरुपूजन किया है।' तो भी इस विषय में पं. श्री वेलर्षिगणि का - एक प्रश्न है कि, 'रूपयों में गुरुपूजा करना कहाँ बताया है ?' प्रत्युत्तर में पू. आ. म. श्री होरसूरीश्वरजी महाराज श्री फरमाते हैं कि, 'कुमारपाल राजा श्री हेमचन्द्राचार्य की सुबर्ण - कमल से
स्वप्नद्रव्य देवद्रव्य ]
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