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सुविधा नहीं, वे भी पूजा करने वाले बने, इसके लिए भी हमें हमारे धन का व्यय करना चाहिए-'ऐसा निर्णय जो आप करें तो वह आपके लाभ का कारण है। परन्तु श्री जिनपूजा करने वाले का अपना मनोभाव कैसा हो, उसकी यह बात है।
प्रश्न- दूसरे के द्रव्य से पूजा करने वाले को अच्छा भाव नहीं ही आता है क्या ?
उत्तर- दूसरे के द्रव्य से श्री जिनपूजा करने वाले के लिए अच्छा भाव आने का कारण ही क्या ? अपने पास श्री जिनपूजा के लिए खर्च किया जा सके-इतना द्रव्य नहीं और श्री जिनपूजा से वंचित रहना भी पसन्द नहीं, इसलिए यदि वह पराये द्रव्य से श्री जिनपूजा करता हो तो उसे-'पूजा में पराया द्रव्य काम में लेना पड़ता है और अपना द्रव्य काम में नहीं ले सकता-'यह खटकता है, ऐसा निश्चित होता है, अर्थात् उसकी इच्छा तो अपने द्रव्य से पूजा करने की हुई न ? शक्ति नहीं है, इसीलिए पर के द्रव्य से पूजा करता है न ? अवसर मिले तो वह अपने द्रव्य से पूजा करने में नहीं चूकता। ऐसी मनोवृत्ति हो तो अच्छा भाव आ सकता है। क्योंकि जिसने परिग्रह की मूर्छा उतार कर पूजा का साधन दिया, उसकी वह अनुमोदना करता ही है। परन्तु विचारने योग्य बात तो यह है कि-आज जो लोग अपने द्रव्य का व्यय किये बिना ही पूजा करते हैं, वे क्या इतने गरीब हैं कि-पूजा के लिए कुछ खर्च नहीं कर सकते ? जो श्रावक धनहीन हों, उनके लिए तो शास्त्र में कहा है कि -ऐसे श्रावकों को घर पर सामायिक करनी चाहिये । फिर यदि किसी का ऐसा देना न हो जिसके कारण धर्म की लघुता का प्रसंग उपस्थित हो, तो वह श्रावक सामायिक में रहा हुआ और ईर्यासमिति आदि के उपयोग वाला बना हुआ श्री
स्वप्नद्रव्य, देवद्रव्य ]
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