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________________ के विद्वान प्रखर शासन प्रेमी शिष्यरत्न पंन्यासजी म. श्रीसुज्ञान विजयजी गणिवर (वर्तमान में आ. म. वि. सोमचन्द्र सू. म.) ने जो पत्र लिखा था वह भी प्रस्तुत पुस्तिका के विषय को परिपुष्ट करने वाला होने से नीचे उद्धृत किया जाता है। पू. प्रा. म. श्री विजय शान्तिचन्द्रसूरिजी म.श्री का . प्रेरणादायी पत्र अहमदाबाद सारंगपुर तलीआनी पोल श्रावक शेरी पूज्य पाद आचार्यदेव श्री विजयशान्तिचन्द्र सूरीश्वरजी महाराज साहेब की तरफ से श्री राधनपुर नमस्कार महामंत्र स्मारक सागरगच्छ संघ के सुश्रावक वर्ग योग्य धर्मलाभ के साथ लिखना है कि यहां पू. श्री देवगुरु की कृपा से सुख शाता है । धर्म के प्रभाव से वहां भी सूख शाता वर्तो। वि. सूचना मात्र से आपका श्री संघ अपना कर्तव्य समझें इसलिए यह पत्र लिखा जा रहा हैं। स्वप्नों की उपज पूरी की पूरी देवद्रव्य में जाती है ऐसा शास्त्रसिद्ध मार्ग है । सं. १९९० के सम्मेलन में भी यह नियम स्पष्ट रूप से समझाया गया है। वर्तमानकाल में एक भी आचार्य का प्रमाण नहीं है कि स्वप्न में से एक पाई भी साधारण में ले जाई जाय । वैशाख मास में आपको पं.स. वि. ने यह बात लिखित प्रमाण आदि द्वारा स्पष्ट रूप से समझायी थी कि पू. आचार्य आत्मारामजी महाराज तथा पू. वल्लभसूरिजी महाराज स्वप्न की उपज देवद्रव्य में ले जाने का स्पष्ट विधान करते हैं। यह उनके अर्थात् पू. आत्मारामजी म. प्रश्नोत्तरों की पुस्तक जो पूज्य वल्लभसूरिजी द्वारा छपवायी गई है और सं. १९४८ में जैन 116 ] [ स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य
SR No.002500
Book TitleSwapnadravya Devdravya Hi Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
PublisherVishvamangal Prakashan Mandir
Publication Year1984
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size8 MB
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