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पुरुषों को सभा में व्याख्यान वांचने को प्रणाली का विरोध शास्त्रानुसार व्यक्त कर अपना मन्तव्य सचोट एवं निर्भयता से प्रकट किया है। बाद में वे स्वप्न की उपज के सम्बन्ध में अपने विचार इस पुस्तक में स्पष्ट करते हैं । पृष्ठ ८६ पर इस प्रकार लिखा है:
स्वप्नों की उपज देवद्रव्य में हो जाती है
प्रश्न ९:-स्वप्न उतारना, घी चढ़ाना, फिर नीलाम करना और दो तीन रुपये मन बेचना, यह क्या ? भगवान् का घी सौदा है क्या ? सो लिखो।
उत्तर :-स्वप्न उतारना घी बोलना इत्यादि धर्म की प्रभावना और जिनद्रव्य की वृद्धि का हेतु है । धर्म की प्रभावना करने से प्राणी तीर्थंकर गोत्र बांधता है, यह कथन श्री ज्ञातासूत्र में है और जिनद्रव्य की वृद्धि करने वाला भी तीर्थंकर गोत्र बांधता है, यह कथन भी संबोध सत्तरी शास्त्र में है। और घी बोलने वास्ते लिखा है इसका उत्तर जैसे तुम्हारे आचारांगादि शास्त्र भगवान की वाणी है । यह चार रूपये में बिकती है ऐसे घी का मोल पड़ता है।
प्रश्न १०:-माला नीलाम करनी, प्रतिमाजो की स्थापना करनी और भगवानजी का भंडारा रखना कहाँ लिखा है ?
उत्तर ११:-मालोद्घाटन करना, प्रतिमाजी स्थापना करनी तथा भगवानजी का भंडारा रखना यह कथन 'श्राद्ध विधि' शास्त्र में है।
(यह बात पहले भी एक बार स्पष्ट की गई है तथापि विशेष स्पष्टता के लिए आ. म. श्री विजयवल्लभसूरि म. श्री
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स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य ]
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