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________________ 'जैन मत के अतिरिक्त अन्य मतों में भी हमने नहीं सुना कि स्त्री का रचा हुआ अमुक शास्त्र है या अमुक स्त्री ने पुरुषों को सभा में व्याख्यान किया; या स्त्री को पुरूषों की सभा में व्याख्यान करने की आज्ञा है। अब पाठकजनों ! विचार करना चाहिए कि पार्वती ढुंढणी ने जो पुस्तक रची है वह जैन मत के शास्त्र को आज्ञा से रची है तब-तो शास्त्र का पाठ दिखाना चाहिये । यदि शास्त्र की आज्ञा के बिना ही रची है तब तो शास्त्राज्ञा के भंग के लिए प्रायश्चित्त लेना चाहिए। शायद पार्वती ढुंढणी ने ऐसा विचार किया हो कि 'भगवंत की आज्ञा भंग करण रूप दूषण मुझे लगा तो क्या हुआ ? मेरी पण्डिताई तो ढुंढक लोगों में प्रकट हो गई।' परन्तु ऐसा विचार बुद्धिमानों का तो नहीं है। पूर्व पक्ष:-क्या अमरसिंह ढुंढक के समुदाय में कोई पुस्तक रचने योग्य ढुंढक साधु नहीं था जिससे पार्वती ढुंढणी को ज्ञानदीपिका पुस्तक रचनी पड़ी। उत्तर:-यह तो मानना ही पड़ेगा कि अमरसिंह का कोई भी चेला पुस्तक रचने में समर्थ नहीं था तब तो स्त्री अथवा पार्वती ढुंढणी को पुस्तक रचनी पड़ी। प्रश्नः-पार्वती ने पुस्तक रची है सो अच्छा काम किया या नहीं ? उत्तर:-जैन शास्त्रानुसार तो यह काम अच्छा नहीं किया है।' इस प्रकार आ. म. श्री वि. वल्लभसूरि महाराज ने वि. सं. १९४८ में लिखी पुस्तक में स्पष्ट रीति से साध्वीजी द्वारा 110 ] [ स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य
SR No.002500
Book TitleSwapnadravya Devdravya Hi Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
PublisherVishvamangal Prakashan Mandir
Publication Year1984
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size8 MB
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