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देवद्रव्य में जाती है । विशेष आपके यहां महाराजश्री हंसविजयजी म. विराजमान हैं उनको पूछना एक गांव का संघ कल्पना करे वह नहीं चल सकता । साधु-साध्वी श्रावक-श्राविका संघ जो करना चाहे वह कर सकता है। आज कल साधारण खाते में विशेष पैसा न होने से कई गांवों में स्वप्न आदि की उपज साधारण खाते में लेने की योजना करते हैं परन्तु मेरी समझ से यह ठीक नहीं है । देवदर्शन करते हुए याद करना।
- इस प्रकार आ., म. श्री वि. धर्मसूरि महाराज ने मुनि धर्मविजयजी के नाम से आचार्य पदवी पहले लिखे हुए पत्र में स्पष्ट कहा है कि 'स्वप्न सम्बन्धी घी की उपज का स्वप्न बनवाने, पालना बनवाने आदि में खर्च करना चाहिए बाकी के पैसे देवद्रव्य में ले जाने को पद्धती सर्वत्र मालूम होती है। तदुपरान्त वे इस पत्र में स्पष्ट कहते हैं कि-'एक गांव का संघ कल्पना करे वह चल नहीं सकता।' इसी तरह वे आगे कहते हैं कि 'आजकल साधारण खाते में विशेष पैसा न होने से कुछ गांवों में स्वप्न आदि को योजना करते हैं परन्तु यह ठीक नहीं।'
__ कहां उस समय के मुनि श्री धर्मविजयजी म. के ये विचार ! और कहां उनके शिष्य मुनि श्री विद्याविजयजी के विचार !! सुज्ञ वाचक, दोनों की तुलना अपनी स्वतंत्र विवेक बुद्धि से कर सकते हैं।
इसी तरह आ. म. श्री वि वल्लभसूरि महाराज के, जब वे मुनि वल्लभविजयजी थे उनके विचार स्वप्न द्रव्य के विषय में तथा साध्वीजी द्वारा पुरुषों की सभा में व्याख्यान वाचने को अशास्त्रीय प्रणाली के विषय में किस प्रकार सुविहित महापुरुषों की शास्त्रानुसारी प्राचीन प्रणाली के अनुरूप तथा कल्याणकारी आत्माओं के लिए मार्ग दर्शक रूप थे, वे उन श्री द्वारा लिखित पुस्तक के निम्न अवतरण पर से स्पष्ट समझा जा सकता हैं।
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[ स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य