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(२०) पू. आ. म. विजयलक्ष्मणसूरि महाराज, सिरोही (राजस्थान)
का. सु. ४ 'प्रभु के मन्दिर में या मन्दिर के बाहर चाहे जहाँ प्रभु के निमित्त जो जो बोली बोली जाय वह सब देवद्रव्य कहा जाता है।' यह बात सर्वथा सत्य और उचित है।
(२१) . पू. उपाध्यायजी म. धर्मसागरजी म.
का. सु. ४ राधनपुर के कुछ भाइयों का स्वप्न द्रव्य संबंधी चर्चा योग्य नहीं है । सं १९९० के पट्टक में स्पष्ट है कि (२) प्रभु के मन्दिर में या बाहर चाहे जिस स्थान पर प्रभु के निमित्त जो बोली बोली जाय वह देवद्रव्य गिना जाय।
तत्त्पश्चात् सं २०१४ में समग्र श्रमण संघ ने मिल कर स्पष्ट लिखित घोषणा की है कि प्रभु के मन्दिर या मन्दिर के बाहर चाहे जिस जगह प्रभु के पांच कल्याणक निमित्त तथा माल परिधानादि देवद्रव्य वृद्धि के कार्य से आया हुआ द्रव्य, देवद्रव्य कहा जाय।
इसमें मुनि पुण्य विजयजी आदि सब के हस्ताक्षर हैं । उन्होंने सम्मिलत रह कर ही यह लिखवाया है।
इससे राधनपुर वाले भाइयों की यह दलील-'समग्र श्रमण संघ सर्वानुमति से निर्णय दें'-यह बात भी आ जाती है ।
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[ स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य