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(१८)
पू. पंन्यासजी सुदर्शन विजयजी म. ( पू. आ. म. श्री वि. सुदर्शनसूरि म. )
इर्लाब्रिज (वीलेपार्ला ) बम्बई आसोज वदी ११
पू. आत्मारामजी महाराज के नाम से जो बात कही गई है वह पहले 'प्रबुद्ध जीवन' में भी छपी है । उसके प्रश्नकार में प्रबुद्ध जीवन के १६-१-६५ के अंक में सुबोधचन्द्र नानालाल ने आचार्य वल्लभसूरि द्वारा प्रकाशित ढुंढक हित शिक्षा नामक पुस्तक में से पू. आत्मारामजी म. के शब्द उद्धृत किये हैं- जिसमें स्पष्ट लिखा है कि- 'सपने उतारना, घी बोलना इत्यादि धर्म की प्रभावना और जिन द्रव्य की वृद्धि का हेतु है ।' इतने स्पष्ट विधान के होते हुए उनके नाम से मिथ्या प्रचार करना केवल अपना ठहराव ही है, ऐसा मुझे लगता है ।
( १९ )
पू. आ. जयंतसूरि म. तथा पू. आ. विक्रमसूरि म.
धुलिया (खानदेश) कार्तिक सुदी २
राधनपुर से ता. ६-६ - ६६ का 'राजनगर साधु सम्मेलन का स्वप्नों के घी के सम्बन्ध में अलग ठहराव' नामक हेण्ड बिल में राजनगरं मुनि सम्मेलन का ठहराव लिखने में आया है वह सर्वथा मन घडन्त है। देवद्रव्य के विपरीत ऐसे लेख छपवा कर जनता को उल्टे रास्ते ले जाने का दुष्ट प्रयत्न शासन की प्राप्ति को दुर्लभ बनाता है ।
सम्मेलन का ठहराव तो है - प्रभु के निमित्त जो जो बोली बोली जाय वह देवद्रव्य कहा जाता है । स्वप्न की बोली प्रभु के निमित्त होती है अतः देवद्रव्य में ही जानी चाहिये ।
स्वप्नद्रव्य देवद्रव्य ]
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