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________________ कल्याणक और जन्म कल्याणक मनाया जाता है और उस डेला की मर्यादा के अनुसार अहमदाबाद का संघ पूर्व मर्यादा में ही आराधक हुआ है, अतः भवभीरु तो 'सहाजनो ये न गतः स पन्थाः ' का अनुसरण करता है । (१२)-- पू. आचार्य म. प्रतापसूरिजी म. शान्ताक्रूझ, बम्बई आसोज वदी ९ राधनपुर के भाई या कोई भी व्यक्ति मनः कल्पित बातें संसार सम्बन्धी चाहे जो करे परन्तु आगम, शास्त्र में मनमानी नहीं चल सकती । आराधक भव्य आत्मा तो केवली भगवन्त के आगम-शास्त्र और उनकी आज्ञा में गीतार्थ भगवन्तों को परम्पराआचरणा अनुसार हो चलते हैं और चलना चाहिये - इसमें अपनी कल्पना या मनमानी तनिक भी काम नहीं आती। जो लोग अलगअलग निराधार प्रमाण किसी के नाम से देते हैं वे अपनी आत्मा को ठगते हैं । ज्ञानी भगवन्त उन पर दया करने की बात कहते हैं । मैं पूज्य ज्येष्ठ गुरुओं की धारणा के आधार पर मानता हूं कि स्वप्न - अर्थात् तीर्थंकर देव की माता को आये हुए चवदह स्वप्नों की उपज तथा पालने की उपज - चाहे वह एक पाई-पैसा हो या लाखों रुपये हों - पूरी की पूरी देवद्रव्य खाते की हो है । मेरी बुद्धि के अनुसार दृढतापूर्वक मैं उनको चुनौती देता हूं जो इसमें परिवर्तन करते हैं । जो लोग आराधना की तरफ दृष्टिपात न करते हो और अपनो सत्ता, वहीवट या इच्छा के अनुसार चलते हों वे भले ही इसे न मानें परन्तु मैं तो तनिक भी उनसे सहमत नहीं हो सकता । 94] [ स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य
SR No.002500
Book TitleSwapnadravya Devdravya Hi Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
PublisherVishvamangal Prakashan Mandir
Publication Year1984
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size8 MB
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