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________________ यू. पंन्यासजी मंगलविजयजी म. पादरली (मारवाड़) (आ. म. श्री वि. मंगलप्रभसूरि म.-पू. आ. म. श्री विजयनीति सूरीश्वरजी म. के गच्छनायक) ___आसोज वदी ९ राधनपुर के पर्चे को पढ़कर यह बताना जरूरी हो गया है कि कंटक बहुल शासन में स्वार्थो सुधारवादी आप्त पुरुषों की मर्यादा का नाश करते हैं । अज्ञानी स्वच्छंद मतियों के टोले संघ बनकर प्रामाणिक पुरुषों की न्यायदृष्टि का लोप करते हैं और शासन की-संघ को छिन्नभिन्न दशा कर डालते हैं। तथापि प्रभु का जयशील शासन इकवीस हजार वर्ष तक चलने वाला है । गीतार्थ संवेगी श्रमणसंघ की छत्रछाया में चलने वाला संघ ही सच्चा प्रामाणिक संघ है । अतः भवभीरुओं को तर्कवाद में, पक्षवाद में न पड़ते हुए स्वार्थ परायण व्यक्तियों पर दया करते हुए स्वदयापूर्वक वर्ताव करना चाहिये । गौतम स्वामी या सिद्धसेन दिवाकरसूरि जैसे व्यक्ति प्रमादवश भूल कर सकते हैं परन्तु भवभीरु होने से कदाग्रही नहीं होते । जब कि वर्तमान तर्कवादी समाचार पत्रों या पर्चों द्वारा यद्वा तद्वा प्रचार करते हैं और आप्त मर्यादा का नाश करने में गौरव समझते है । यह कृष्णपक्षियों का प्रचार कंटक बहुल रूप है। , चवदह स्वप्नों को प्रभु के च्यवन कल्याणक रूप मानकर अहमदाबाद का संघ आज तक उस राशि को देवद्रव्य में ही ले जाकर जीर्णोद्धार में खर्च करता है। डेला के उपाश्रय में प्रायः पंन्यासजी म. रूपविजयजी के समय देवद्रव्य की वृद्धि का हेतु च्यवन कल्याणक मनाकर च्यवन स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य ] [93
SR No.002500
Book TitleSwapnadravya Devdravya Hi Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
PublisherVishvamangal Prakashan Mandir
Publication Year1984
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size8 MB
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