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प्रकार है :
१. गुरुपूजा संबंधी स्वर्ण आदि द्रव्य गुरु- द्रव्य कहा जाता है या
नहीं ?
२. पहले इस प्रकार की गुरुपूजा का विधान था या नहीं ? ३. इस द्रव्य का उपयोग किसमें किया जाता है वह बताने की कृपा
करें |
उक्त प्रश्नों का उत्तर देते हुए पू. आ. भ. जगद्गुरु विजय हीरसूरीश्वरजी म. फरमाते है कि गुरुपूजा संबंधी द्रव्य स्वनिश्राकृत न होने से गुरुद्रव्य नहीं होता जब कि रजोहरण आदि स्वनिश्राकृत होने से गुरुद्रव्य कहे जाते है ।
हेमचन्द्राचार्याणां कुमारपालराजेन अष्ट- शत- सुवर्णकमलैः प्रत्यहं पूजा कृताऽस्ति ।
भावार्थ - पू. आ. भ. श्री हेमचन्द्रसूरि महाराज श्री की कुमारपाल महाराजा १०८ स्वर्ण कमलों से सदा पूजा करता था श्रीहीरसूरिजी म. फरमाते है कि ऐसा वर्णन कुमारपाल प्रबंध मे है ।
तथा धर्मलाभ इति प्रोक्ते दूरादुच्छितपाणये सूरये सिद्धसेनाय ददौ कोटिं नराधिप इति इदं चाग्रपूजा - रूपं द्रव्यं तदानीं संघेन जीर्णोद्धारे तदाज्ञया व्यापारितम् ॥
भावार्थ - तथा धर्मलाभ 'तुम्हें धर्म का लाभ मिले' इस प्रकार दूर से जिन्होंने हाथ ऊंचे किये हैं, ऐसे पू. श्री सिद्धसेन सूरिजी म. को विक्रमराजा ने कोटि द्रव्य दिया । 'इस गुरु पूजा रूप द्रव्य का उस समय जीर्णोद्धार में उपयोग किया गया था ।' ऐसा उनके प्रबन्ध आदि में कहा गया है । (हीरप्रश्न: प्रकाश : ३)
देवद्रव्यादि का संचालन कैसे हो ? * ५०