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इस्तेमाल कर नहीं सकते।
८. गुरुद्रव्य :- पंचमहाव्रतधारी, संयमी, त्यागी महापुरुषों के आगे गहुंली की हो या गुरु की द्रव्यादि से पूजा की एवं गुरु-पूजा की बोली की रकम 'जीर्णोद्धार' या 'नवीन मंदिर बनाने' में खर्च करनी चाहिए। . ऐसा 'द्रव्य सप्ततिका' १३वीं गाथा की स्वोपज्ञ टीका में स्पष्ट रूपसे बताया हैं । जो इस प्रकार है :- “स्वर्णादिकं तु गुरुद्रव्यं जीर्णोद्धारे नव्यचैत्यकरणादौ च व्यापार्यम्” गुरु-प्रवेश महोत्सवमें रथ, हाथी, घोडा आदि की बोली या नकरा तथा गुरुमहाराज को कामली (कंबल) आदि बोहराने की बोली भी गुरुद्रव्य कहलाती है। यह रकम जीर्णोद्धारादि देवद्रव्यमें ही इस्तेमाल कर सकते हैं। गुरु – वैयावच्चमें इस्तेमाल कर नहीं सकते । जीर्णोद्धारादि देवद्रव्य खातेमें ये पैसे जाते हैं । गुरुनिमित्त सभी बोलियां देवद्रव्य है।
९. मंदिर साधारण :- श्री जिनेश्वर परमात्मा की भक्ति तथा श्री जिनमंदिर की सार संभाल आदि के लिए दिया गया द्रव्य । इस द्रव्य से पुजारी को तथा मंदिर के नोकरो को पगार दे सकते हैं उसी प्रकार परमात्मा की भक्ति के लिए लगने वाले तमाम द्रव्य ला सकते हैं। श्री जिनमूर्ति तथा श्री जिनमंदिर के कार्य सिवाय अन्य किसीभी कार्यमें इस द्रव्य का उपयोग कर नहीं सकते।
१०. साधारण द्रव्य :- यह साधारण द्रव्य धार्मिक द्रव्य है । सात क्षेत्रमें से कोई भी क्षेत्र पीडाग्रस्त (निर्बल) हो, जरूरत हो तो आवश्यकतानुसार उस क्षेत्रमें इस द्रव्य का उपयोग कर सकते है । परंतु व्यवस्थापक अथवा अन्य कोई व्यक्ति अपने व्यक्तिगत कार्यमें यह द्रव्य इस्तेमाल नहीं कर सकता। दीनदुःखी अथवा तो किसीभी जन साधारण सर्व सामान्य लोकोपयोगी व्यावहारिक अथवा जैनतर धार्मिक कार्यमें यह
देवद्रव्यादि का संचालन कैसे हो ? * ५