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________________ हो तो कितनी ही फूंकें मारें या लाईटर दबाएं, आग नहीं जल सकती। ऐसे ही गुरू चाहे अपने जीवन का सारा ज्ञान शिष्य को प्रदान कर दें लेकिन जब तक वह उस ज्ञान का अपने जीवन में आचरण नहीं करता तब तक उसके भीतर वो परम ज्योति प्रकट नहीं हो सकती। इसी संदर्भ में मुझे एक प्रसंग याद आ गया। एक सिख भाई ने ग्रंथी से अमृत चखा यानि नामदान लिया तो ग्रंथी ने उसे श्री गुरु ग्रंथ साहब जी की एक पंक्ति दे दी : __“गुरू सिख दे बंधन काटे" अर्थात् गुरू, शिष्य के बंधन काट देता है। उस व्यक्ति ने इस लाईन का रट्टा मार लिया। अब तो क्या घर, क्या दुकान, हर जगह इसी का उच्चारण करता। जब तोलने लगता तो बीच में ही डंडी मार देता, कपड़ा नापने लगता तो गज सरका देता और मुँह में एक ही बात कि- गुरु सिख दे बंधन काटे। कुछ लोगों ने जाकर ग्रंथी से शिकायत कर दी कि महाराज आपने उसे अच्छा नामदान दिया, पहले तो वह लोगों की जेबें ही काटता था पर अब तो सरेआम लोगों के गले काटता है। उसकी धोखाधड़ी इतनी बढ़ चुकी है कि वह दिन के उजाले में ही लोगों की आँखों में धूल झोंक रहा है। ऐसे तो धर्म और गुरू बदनाम हो जाएंगे, आप जरा उसे बुलाकर समझाओ।
SR No.002495
Book TitleKaise Kare Is Man Ko Kabu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherGuru Amar Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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