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जी के मंदिर में बैठा प्रभु का कीर्तन कर रहा है। उसे वहीं बैठे कीर्तन की हिलोरें आ रही हैं और प्रभु के दर्शन हो रहे हैं।
___आयु दोनों की पूरी हो रही है, नाटक शाला में देवदूत पहुंच गए देव विमान लेकर, कहने लगे-चल भाई हमारे साथ । कहाँ ? वैकुण्ठ में । मैं ! और वैकुण्ठ में ? शायद आप गलती से आ गए, मेरा बड़ा भाई बैठा है माधव जी के मंदिर में, आप उसे लेने आए होंगे। देवदूत कहने लगे-नहीं। हम तो आपको ही लेने आए हैं। आप बैठे बेशक नृत्य शाला में हो पर आपका मन प्रभु भक्ति में लीन है।
1 उधर बड़े भाई के पास यमदूत पहुँच गए। कहने लगे-चल ओए। हैं ? कहाँ ? कहाँ क्या, नरक में और कहाँ। नरक में ? तुम्हें पता नहीं मैं कहाँ बैठा हूँ ? यमदूत कहते-शरीर से चाहे तूं माधव जी के मंदिर में बैठा है पर तेरा मन तो नर्तकी के नाच में मग्न है।
समझे आप ? ये है मन की गति। धर्म स्थान से भी अधिक महत्व धर्म भावना का है। बस जीवन का कल्याण चाहते हो तो “इस मन की गति संभालिए, प्रभु की ओर डालिए। धोना जो चाहे, तो मन को धो ओम् जपो, प्रभु नाम जपो।।"
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