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कर मैं युद्ध कर रहा हूँ ? अरे कौन बेटा, किसका राज्य ? जब थूक ही आया तो दोबारा क्या चाटना। तूने युद्ध ही करना है तो अपने कर्मों से कर।
ध्यान अब मोड़ ले चुका है। राजा श्रेणिक ने कुछ देर बाद अपना प्रश्न फिर दोहराया-प्रभु अब वो मुनि मृत्यु को प्राप्त हों तो कहाँ जाएंगे? राजन! छठी नरक में। अब ? पांचवीं में। करते-करते पहली नरक तक आ गए।
और उससे भी ऊपर उठ गए-पहला देवलोक, दूसरा, तीसरा चलते-चलते, बढ़ते-बढ़ते छब्बीसवें देवलोक तक जा पहुंचे। और देखते क्या हैं ? तभी देव दुन्दुबी बज उठी 'अहो ज्ञानं, अहो ज्ञानं ।' प्रभु ये केवल ज्ञान, ये ब्रह्म ज्ञान किसे हुआ ? कि- उसी प्रसन्न चन्द्र महामुनि को।
__समझे ? मन की गति कितनी प्रबल है, ये यहीं बैठे-बैठे स्वर्ग के नजारे दिखा दे और यहीं बैठे साक्षात नरक के दर्शन करा दे। तो इस मन रूपी दुष्ट घोड़े को ज्ञान की लगाम के द्वारा संभालो, जो संभालेंगे वे सुख पाएगें। शेष फिर...
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