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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
By observing a variety of codes of uprightness (sheel vratas) souls are reborn as Yaksha (a class of divine beings). When their opulence enhances with increasing prosperity and they glow, then they start believing that there is no fall from the heavens, meaning that gods are immortal. (14)
अप्पिया देवकामाण, कामरूव- विउव्विणो । उड्ढं कप्पेसु चिट्ठन्ति, पुव्व वाससया बहू ॥ १५ ॥
तृतीय अध्ययन [38]
दिव्य कामभोगों में लीन, इच्छानुसार रूप निर्मित करने में समर्थ वे देव असंख्य काल तक ऊर्ध्व कल्पों (देव-विमानों) में रहते हैं ॥ १५ ॥
These gods, capable of acquiring any desired form, dwell in higher realms (kalpas or celestial vehicles) for immeasurable time indulging in divine pleasures. (15) तत्थ ठिच्चा जहाठाणं, जक्खा आउक्खए चुया । वेन्ति माणसं जोणिं, से दसंगेऽभिजायई ॥ १६॥
वे देवलोक में यथास्थान अपनी आयु सीमा तक रहते हैं; आयु समाप्त होने पर वे देवलोक से च्यवकर मनुष्य-जन्म पाते हैं, वहाँ उन्हें दशांग (दश प्रकार की) भोग सामग्री प्राप्त होती है ॥ १६ ॥
These gods remain in those divine realms till their life-span lasts. When their lifespan comes to an end they descend and are born as human-beings. Here they get ten kinds of pleasure objects. (16)
खेत्तं वत्युं हिरण्णं च, पसवो दास-पोरुसं । चत्तारि काम - खन्धाणि, तत्थ से उववज्जई ॥ १७ ॥
जहाँ वे उत्पन्न होते हैं, वहाँ उन्हें इन चार काम-स्कन्धों की उपलब्धि होती है - (१) खेत्त - क्षेत्र (खुली जमीन), (२) वत्थु - गृह, (३) पशु, और (४) दास पौरुषेय ॥ १७॥
Where they take birth they get these four facilities for work-1. area (open land), 2. dwelling, 3. gold (wealth), and 4. labour including animals, salves and servants. (17)
मित्तवं नायवं होइ, उच्चागोए य वण्णवं ।
अप्पायंके महापन्ने, अभिजाए जसोबले ॥ १८ ॥
वह सन्मित्रों से युक्त, ज्ञातिमान, उच्च गोत्रीय, सुन्दर वर्ण वाले, नीरोग, महाप्रज्ञ, अभिजात, यशस्वी और सामर्थ्यवान होते हैं ॥ १८ ॥
They are endowed with good friends, relatives, high family status, good complexion, perfect health, wisdom, nobility, fame and power. (18)
भोच्चा माणुस्सए भोए, अप्पडिरूवे अहाउयं । पुव्वं विसुद्ध - सद्धम्मे, केवलं बोहि बुज्झिया ॥ १९॥
मानव-सम्बन्धी अनुपम भोगों को आयु पर्यन्त भोगकर भी विशुद्ध धर्म की आराधना से वे निर्मल बोधि (ज्ञान) से बोधित होते हैं ॥ १९ ॥
प्रभाव