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तर सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
तृतीय अध्ययन [36]
Sometimes this living being (soul) is born in a warrior clan and sometimes in a lowly or mixed caste (vokkas or varnasankar). Also, this living being (soul) is sometimes born in a lowly genus, such as moth, insect, worm or ant. (4)
एवमावट्ट-जोणीसु, पाणिणो कम्मकिब्बिसा।
न निविज्जन्ति संसारे, सव्वट्ठेसु व खत्तिया॥५॥ . अनेक योनियों में परिभ्रमण करते हुये, कर्मों से मलिन जीव उसी प्रकार संसार से निवृत्त होने की इच्छा नहीं करते जिस प्रकार क्षत्रिय (ऐश्वर्यशाली, धनाढ्य, सत्ता-सम्पन्न व्यक्ति) विषय सुख साधनों से निवृत्त होना नहीं चाहते ॥५॥
Traversing (getting reborn) through numerous genus, the living beings tarnished with karmas do not desire to renounce the mundane world just like the kshatriyas (people of warrior clans with grandeur, wealth and power) do not wish to part with their means of worldly comforts and pleasures. (5)
कम्म-संगेहिं सम्मूढा, दुक्खिया बहु-वेयणा।
अमाणुसासु जोणीसु, विणिहम्मन्ति पाणिणो॥६॥ कर्मों के संयोग से मूढ़ बने हुये जीव मानवेतर (पशु, नरक आदि) योनियों में उत्पन्न होकर . अत्यधिक त्रास और पीड़ा भोगते हैं॥६॥
Living beings bewildered due to bondage of karmas suffer extreme distress and pain by being born in a non-human genus (as animals and infernal beings). (6).
कम्माणं तु पहाणाए, आणुपुव्वी कयाइ उ।
जीवा सोहिमणुप्पत्ता, आययन्ति मणुस्सयं ॥७॥ (अति दीर्घकाल के पश्चात्) कदाचित् काल क्रम से कुछ आत्म-विशुद्धि (मनुष्य भव प्रतिबन्धक कर्मों का क्षय) होने पर वह जीव पुनः मानव-भव को प्राप्त होता है॥ ७॥
By chance on gaining some inner purity with passage of time (after a very long period), such a living being (soul) is reborn as a human. (7)
माणुस्सं विग्गहं लद्धं, सुई धम्मस्स दुल्लहा।
जं सोच्चा पडिवज्जन्ति, तवं खन्तिमहिंसयं ॥८॥ मानव (मनुष्य) योनि प्राप्त होने पर भी सद्धर्म का श्रमण कठिन है; जिसे सुनकर क्षमा, तप और अहिंसा को स्वीकार किया जा सकता है॥८॥
Even when born as a human being it is very difficult to listen to the right religion; hearing which leads to acceptance of forgiveness, austerity and ahimsa. (8)
आहच्च सवणं लखें. सद्भा परमदल्लहा।
सोच्चा नेआउयं मग्गं, बहवे परिभस्सई॥९॥ सद्धर्म श्रवण का सुयोग मिल जाने पर भी उस पर श्रद्धा होना और भी दुर्लभ है। सच्चा मोक्षमार्ग सुनकर भी अनेक व्यक्ति पथभ्रष्ट हो जाते हैं ॥९॥
Even on getting opportunity to hear the right religion, it is still difficult to have faith in it. Many individuals go astray even after hearing about the true path of liberation. (9)