________________
[35] तृतीय अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
तइयं अज्झयणं : चाउरंगिज्जं तृतीय अध्ययन :चतुरंगीय Chapter-3: FOUR LIMBS
चत्तारि परमंगाणि, दुल्लहाणीह जन्तुणो।
माणुसत्तं सुई सद्धा, संजमंमि य वीरियं॥१॥ इस लोक (संसार) में प्राणियों के लिये (मोक्ष-प्राप्ति के साधन) चार अंगों की प्राप्ति होना दुर्लभ है-(१) मनुष्यत्व (मानव गति की प्राप्ति), (२.) मोक्षप्रदायक सद्धर्म को सुनना, (३) उस पर श्रद्धा, और (४) संयम में पराक्रम॥१॥
In this world it is very difficult for living beings to embrace four limbs (essentials for liberation)-1. Manhood (manushyatva)-birth as a human, 2. Listening (shruti)listening to the righteous religion,3. Faith (shraddha)-firm belief on the said righteous religion, and 4. Vitality in discipline (samyam-virya)-to show vitality or vigour or application in (religious) discipline. (1)
समावन्नाण संसारे, नाणा-गोत्तासु जाइसु।
कम्मा नाणा-विहा कटु, पुढो विस्संभिया पया॥२॥ यह संसारी जीव अनेक प्रकार के कर्म करके तथा उन कृत कर्मों के कारण विभिन्न प्रकार की जाति और गोत्रों में उत्पन्न होता है। इस प्रकार यह लोक के प्रत्येक प्रदेश का स्पर्श कर लेता है॥२॥
Indulging in various activities, this mundane being (soul), as a consequence takes birth in different kinds of species (jati) and classes (gotra). This way it touches every space-point of this Lok (occupied space or universe). (2)
एगया देवलोएसु, नरएसु वि एगया।
एगया आसुरं कायं, आहाकम्मेहिं गच्छई ॥३॥ अपने किये हुये कर्मों के अनुसार कभी यह जीव देवलोक में देव बनता है, कभी नरक में नारक रूप उत्पन्न होता है और कभी असुर बन जाता है॥३॥
Depending on its activities (consequent bondage of karmas) this soul sometimes takes birth as a divine being in heaven, sometimes as infernal being in hell and sometimes as Asura (divine being of lower realms). (3)
एगया खत्तिओ होई, तओ चण्डाल-वोक्कसो।
तओ कीड-पयंगो य, तओ कुन्थु-पिवीलिया॥४॥ कभी यह जीव क्षत्रिय कुल में जन्म लेता है तो कभी चाण्डाल और वर्णसंकर के रूप में उत्पन्न होता है तथा यही जीव कभी कीट-पतंग तो कभी कुंथु और कभी चींटी आदि क्षुद्र योनियों में जन्म धारण करता है॥४॥