________________
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
The aspirant should avoid such desperate thoughts, "Though I observe austerities and other auspicious rituals (upadhaan), I also move about observing special austerities, still my knowledge obscuring and other karmas have not been destroyed. (43)
२२. दर्शन परीषह
[31] द्वितीय अध्ययन
नत्थि नूणं परे लोए, इड्ढी वि तवस्सिणो । अदुवा वंचिओ मि' त्ति, इइ भिक्खू न चिन्तए ॥ ४४ ॥ 'अभू जिणा अत्थि जिणा, अदुवावि भविस्सई । मुसं ते एवमाहंसु', इइ भिक्खू न चिन्तए ॥ ४५ ॥
निश्चित रूप से परलोक नहीं है और तपस्वियों को ऋद्धि भी प्राप्त नहीं होती है अथवा मैं तो धर्म के नाम पर ठगा गया हूँ- साधु ऐसा चिन्तन न करे ॥ ४४ ॥
वर्तमान काल में जिन (अरिहंत देव) हैं, भूतकाल में जिन हुये थे अथवा आगामी काल में जिन होंगे-ऐसा जो कहते हैं, वे मिथ्यावादी हैं; साधु ऐसा विचार न करे ॥ ४५ ॥
22. Darshan-parishaha (Conduct related affliction )
An ascetic should not nurture such ideas, 'It is for sure that there is no after-life or those practicing austerities never gain divine wealth (riddhi) or I have been duped in name of religion.' (44)
He should also not think that mendacious are those who maintain that 'Jinas existed in the past, exist at present and will exist in future too. ' (45)
एए परीसहा सव्वे, कासवेण पवेइया । भिक्खू न विन्नेज्जा, पुट्ठो केणइ कण्हुई ॥ ४६ ॥
- त्ति बेमि ।
ये सभी परीषह काश्यप गोत्रीय श्रमण भगवान महावीर ने बताए हैं। इन्हें जानकर, कहीं भी, किसी भी परीषह के उपस्थित होने पर भिक्षु इनसे पराजित न हो, इन सभी परीषहों पर विजय प्राप्त करे ॥ ४६ ॥
- ऐसा मैं कहता हूँ ।
All these afflictions have been told by Shraman Bhagavan Mahavir of the Kashyap clan. Knowing these, an ascetic being afflicted by any of these afflictions anywhere should not get overwhelmed by them but should overcome them. (46)
-So I say.