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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
अच्छिले - अक्षिल, माहए- मागध, अच्छिरोडए - अक्षिरोडक, विचित्ते - विचित्र, चित्तपत्त - चित्रपत्रक, ओहिंजलिया-ओहिंजलिया, जलकारी-जलकारी, नीया नीचक, तन्तवगाविण - तन्तवक (अथवा तम्बगाइणताम्रक या तम्बकायिक) - ॥ १४८ ॥
षट्त्रिंश अध्ययन [ 538 ]
Aksila, Maagadh, Akshirodak, Vichitra, Chitrapatrak, Ohimjalia, Jalakari, Nichaka, and Tantavak- (148)
इइ चउरिन्दिया एए, ऽणेगहा एवमायओ । लोगस्स एगदेसम्म ते सव्वे परिकित्तिया ॥ १४९ ॥.
इत्यादि चतुरिन्द्रिय त्रसकायिक जीव अनेक प्रकार के कहे गये हैं। ये सभी लोक के एक देश (अंश या भाग) में हैं; समस्त लोक में नहीं हैं ॥ १४९ ॥
Thus there are several types of four-sensed mobile beings and it is said that they exist only in a section of the universe (Lok) and not in the whole. (149) य ।
संत पप्पऽणाईया, अपज्जवसिया वि ठि पडुच्च साईया, सपज्जवसिया वि य ॥ १५० ॥
संतति-प्रवाह की अपेक्षा से (सभी चतुरिन्द्रिय जीव) अनादि और अनन्त हैं तथा स्थिति की अपेक्षा से सादि - सान्त भी हैं ॥ १५० ॥
In context of continuity these (four-sensed mobile beings) are beginningless and endless. However in context of existence at a particular place they have a beginning as well as end. (150)
छच्चेव य मासा उ, उक्कोसेण वियाहिया । चउरिन्दिय आउठिई, अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ॥ १५१ ॥
चतुरिन्द्रिय जीवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति छह (महीने) की और जघन्य आयुस्थिति अन्तर्मुहूर्त की कही गई है ॥ १५१ ॥
The maximum life-span of four-sensed beings is six months and minimum is of one Antarmuhurt (less than forty-eight minutes ). ( 151 )
संखिज्जकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । चरिन्दियकाठिई, तं कायं तु अमुंचओ ॥ १५२ ॥
उस अपनी चतुरिन्द्रिय काय को न छोड़कर ( उसी में बार-बार जन्म-मरण करने का काल ) कायस्थिति उत्कृष्टतः संख्यात काल की और जघन्यतः स्थिति अन्तर्मुहूर्त्त की कही गई है ॥ १५२ ॥
If four-sensed beings continue to die and get reborn in the same state without leaving their body-type, then the maximum life-span for the body-type is uncountable time and minimum is of one Antarmuhurt. (152)
जहन्नयं ।
अणन्तकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं विजमि सकाए, अन्तरेयं वियाहियं ॥ १५३ ॥