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[535 ] षट्त्रिंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
अणन्तकालमुक्कोस, अन्तोमुहत्तं जहन्नयं।
बेइन्दियजीवाणं, अन्तरेयं वियाहियं ॥१३४॥ द्वीन्द्रिय जीवों का अन्तर (द्वीन्द्रिय से निकलकर पुनः द्वीन्द्रिय में उत्पन्न होने के मध्य का समय) उत्कृष्टतः अनन्तकाल का और जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त का है॥ १३४॥
The maximum intervening period between once leaving the body-type (two-sensed body), (taking rebirth in other body-types and moving in cycles of rebirth as other body-types) and again taking rebirth in the same body-type (two-sensed body) is infinite time and the minimum is one Antarmuhurt. (134)
एएसिं वण्णओ चेव, गन्धओ रसफासओ।
संठाणादेसओ वावि, विहाणाइं सहस्ससो॥१३५॥ इन द्वीन्द्रिय जीवों के वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान की अपेक्षा से हजारों प्रकार हो जाते हैं॥१३५॥
These two-sensed beings are also of thousands of kinds with regard to colour, smell, taste, touch and constitution. (135) त्रीन्द्रिय त्रसकाय की प्ररूपणा
तेइन्दिया उ जे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया।
पज्जत्तमपज्जत्ता, तेसिं भेए सुणेह मे॥१३६ ॥ जो त्रीन्द्रिय जीव हैं,वे दो प्रकार के कहे गये हैं-(१) पर्याप्त, और (२) अपर्याप्त। इन जीवों के भेद मुझसे सुनो। १३६ ॥ Three-sensed mobile beings
Three-sensed beings are of two types-(1) fully developed (paryaapt), and (2) under-developed (aparyaapt). Hear from me the subdivisions of these three-sensed beings. (136)
कुन्थु-पिवीलि-उड्डंसा, उक्कलुद्देहिया तहा।
तणहारा-कट्ठहारा, मालुगा पत्तहारगा॥१३७॥ कुन्थु-कुन्थुआ, पिवीलि-पिपीलिका (चींटी), उड्डंसा-उइंस (खटमल), उक्कल (मकड़ी), उद्देहिया-उदई (दीमक), तणहारा-तृणहारक, कट्ठहारा-काष्टहारक (घुन), मालुगा-मालुका, पत्तहारगा-पत्रहारक-॥ १३७॥
Kunthu, Pipilika (ant), Uddamsa (bed-bug), Ukkal (spider), Udai (white ants), Trinahaaraka (straw-worm), woodlouse, maaluka, patraharak - (137)
कप्पासऽद्विमिंजा य, तिंदुगा तउसमिंजगा।
सदावरी य गुम्मी य, बोद्धव्वा इन्दकाइया॥१३८॥ कपासऽट्ठिमिंजा-कपास और उसकी अस्थि कपासिये-करकड़ों में उत्पन्न होने वाले जीव, तिन्दुगातिन्दुक, तउसमिंजगा-तुपुषमिंजक, सदावरी-सतावरी, गुम्मी-गुल्मी-(कानखजूरा), इन्द्रकायिक-षट्पदी (जू) ये सब-त्रीन्द्रिय त्रसकायिक जीव जानने चाहिये॥ १३८ ।