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[533] षट्त्रिंश अध्ययन
अन्तोत्तं
जहन्नयं ।
अणन्तकालमुक्कोसं, विजढंमि सए काए, वाउजीवाण अन्तरं ॥ १२४॥
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
स्वकाय छोड़कर-निकलने के बाद ( अन्य कायों में परिभ्रमण के बाद पुनः वायुकाय में उत्पन्न होने तक का अन्तराल) अन्तर उत्कृष्टतः अनन्तकाल तथा जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त होता है ॥ १२४ ॥
The maximum intervening period between once leaving the body-type (air-body), (taking rebirth in other body-types and moving in cycles of rebirth as other body types) and again taking rebirth in the same body-type (air-body) is infinite time and the minimum is one Antarmuhurt. (124)
एएसिं वण्णओ चेव, गन्धओ रसफासओ । संठाणादेसओ वावि, विहाणाइं सहस्ससो ॥ १२५ ॥
इन वायुकायिक जीवों के वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान की अपेक्षा से हजारों प्रकार होते हैं ॥ १२५ ॥ .
These air-bodied beings are also of thousands of kinds with regard to colour, smell, taste, touch and constitution. ( 125 )
उदार सकाय की प्ररूपणा
ओराला तसा जे उ, चउहा ते पकित्तिया । बेइन्दिय - तेइन्दिय, चउरो पंचिन्दिया चेव ॥ १२६ ॥
जो उदार (उराला) त्रस हैं, वे चार प्रकार के कहे गये हैं, यथा - (१) द्वीन्द्रिय, (२) त्रीन्द्रिय, (३) चतुरिन्द्रिय और (४) पंचेन्द्रिय॥ १२६ ॥
Gross mobile beings
The gross mobile-bodied beings (mobile beings) are said to be of four kinds - (1) two-sensed, (2) three-sensed, (3) four-sensed, and (4) five-sensed beings. (126)
द्वीन्द्रिय त्रस जीवों की प्ररूपणा
. बेइन्दिया उ जे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया । पज्जत्तमपज्जत्ता, संभे सुह मे ॥ १२७॥
जो द्वीन्द्रिय जीव हैं, वे दो प्रकार के कहे गये हैं- (१) पर्याप्त, और (२) अपर्याप्त। उन द्वीन्द्रिय जीवों के भेदों को मुझसे सुनो ॥ १२७ ॥
Two-sensed mobile beings
Two-sensed beings are of two types-(1) fully developed (paryaapt), and (2) underdeveloped (aparyaapt ). Hear from me the subdivisions of these two-sensed beings. (127) किमिणो सोमंगला चेव, अलसा माइवाहया । वासीमुहा य सिप्पीया, संखा संखणगा तहा ॥ १२८ ॥