________________
तर सोचेत्र उत्तराध्ययन सूत्र
षट्त्रिंश अध्ययन [532]
संवर्तक वात आदि और अनेक प्रकार के बादर पर्याप्त वायुकायिक जीव हैं। नानात्व (अनेक प्रकार के भेदों) से रहित सूक्ष्म वायुकायिक जीवों का एक ही भेद है॥ ११९ ॥
There are also tornado or hurricane (samvartak vaat) and many other kinds of gross air-bodied living beings. Without having any variety, the minute air-bodied beings are said to be of one kind only. (119)
सुहुमा सव्वलोगम्मि, लोगदेसे य बायरा।
इत्तो कालविभागं तु, तेसिं वुच्छं चउव्विहं॥१२०॥ सूक्ष्म वायुकायिक जीव सर्वलोक में व्याप्त हैं किन्तु बादर वायुकायिक जीव लोक के एक देश (अंश या भाग) में ही हैं। यहाँ से आगे में वायुकायिक जीवों के चार प्रकार का कालविभाग कहूँगा ॥ १२०॥
___The minute air-bodied beings are spread all over the universe (Lok); however, the gross ones are only in one part of it. Now I will describe the fourfold division of airbodied beings with regard to time. (120)
संतई पप्पऽणाईया, अपज्जवसिया वि य।
ठिई पडुच्च साईया, सपज्जवसिया वि य॥१२१॥ संतति-प्रवाह की अपेक्षा वायुकायिक जीव अनादि-अनन्त हैं और स्थिति की अपेक्षा वे सादि-सान्त भी हैं॥ १२१॥
In context of continuity these (gross air-bodied beings) are beginningless and endless. However in context of existence at a particular place they have a beginning as well as end. (121)
तिण्णेव सहस्साइं, वासाणुक्कोसिया भवे।
आउट्ठिई वाऊणं, अन्तोमुहुत्तं जहन्निया॥१२२॥ उनकी (वायुकायिक जीवों की) उत्कृष्ट आयुस्थिति तीन हजार वर्ष की है और जघन्य आयुस्थिति अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है॥ १२२॥
The maximum life-span of (gross) air-bodied beings is three thousand years and minimum is of one Antarmuhurt (less than forty-eight minutes). (122)
असंखकालमुक्कोस, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं।
कायट्टिई वाऊणं, तं कायं तु अमुचओ॥१२३॥ उस वायुकाय को न छोड़कर उसी में जन्म-मरण करते रहने पर वायुकायिक जीवों की कायस्थिति उत्कृष्टत: असंख्यात काल की और जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त की होती है॥ १२३॥
If air-bodied beings continue to die and get reborn in the same state without leaving their body-type, then the maximum life-span for the body-type is uncountable time and minimum is of one Antarmuhurt. (123)