________________
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
In the uppermost sixth part of the highest Kosa (2 miles) of that Yojan is the space occupation (avagaahana) of Siddhas; in other words the perfected souls dwell there. (62) तत्थ सिद्धा महाभागा, लोयग्गम्मि पइट्ठिया । भवप्पवंचउम्मुक्का, सिद्धिं वरगइं गया ॥ ६३॥
भव प्रपंच-जन्म-मरणादि संसार के प्रपंचों से उन्मुक्त, परम श्रेष्ठ सिद्ध गति को प्राप्त, महाभाग्यशाली सिद्ध भगवान वहाँ लोक के अग्र भाग में स्थित - प्रतिष्ठित हैं ॥ ६३ ॥
षट्त्रिंश अध्ययन [ 520]
Free from the vagaries of the world (births and deaths), attaining the most exalted state of perfection the most fortunate Siddha Bhagavan dwell there at the edge of the universe (Lok). (63)
उस्सेहो जस्स जो होइ, भवम्मि चरिमम्मि उ । तिभागहीणा तत्तो य, सिद्धाणोगाहणा भवे ॥ ६४ ॥
अन्तिम भव (जिस जन्म से जीव मुक्त होता है) में जिसकी (जिस मनुष्य की) जितनी ऊँचाई होती है, सिद्धावस्था में उस ऊँचाई की त्रिभाग (एक-तिहाई भाग) कम ऊँचाई होती है ॥ ६४ ॥
The height of perfected soul remains two-third of his height during his last existence (from which he attains liberation). (64)
य ।
एगत्तेण साईया, अपज्जवसिया वि पुहुत्तेण अणाईया, अपज्जवसिया विय ॥ ६५ ॥
एक सिद्ध जीव की अपेक्षा से सिद्ध सादि (आदि सहित ) और अनन्त भी हैं और पृथक्-पृथक् अनेक जीवों की अपेक्षा से सिद्ध अनादि-अनन्त भी हैं ॥ ६५ ॥
Considered individually, perfected souls have a beginning and no end. Considered collectively (as a class) they are without a beginning or an end. ( 65 )
अरूविणो जीवघणा, नाणदंसणसन्निया ।
अलं सुहं संपत्ता, उवमा जस्स नत्थि उ ॥ ६६॥
वे सिद्ध जीव अरूपी हैं, घनरूपी सघन हैं, ज्ञानदर्शन संज्ञा से सम्पन्न उपयोगमय हैं, ऐसा अतुल सुख उन्हें प्राप्त है, जिसकी कोई उपमा नहीं है ॥ ६६ ॥
Those perfected souls are formless, exist in coalesced state and are endowed with the attribute of ever active pulsating perception and knowledge. They possess incomparable limitless bliss. (66)
लोग
ते सव्वे, नाणदंसणसन्निया । संसारपारनिच्छिन्ना, सिद्धिं वरगइं गया ॥ ६७ ॥
सभी सिद्ध जीव-ज्ञान-दर्शन से संपन्न ( युक्त), संसार से पार पहुँचे हुए, परम गति - सिद्धि को प्राप्त लोक के एक देश (भाग) में अवस्थित हैं ॥ ६७ ॥
All those perfected souls, endowed with knowledge and perception, having reached beyond the world, having attained the ultimate state of perfection, dwell in one (specific) section of universe (Lok). (67)