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त सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
षट्त्रिंश अध्ययन [510]
Time is also said to be beginningless, endless and eternal with regard to its continuous flow but with regard to particularity it has a beginning and an end too. (9)
रूपी अजीव-प्ररूपणा
खन्धा य खन्धदेसा य, तप्पएसा तहेव य।
परमाणुणो य बोद्धव्वा, रूविणो य चउव्विहा॥१०॥ (१) स्कन्ध, (२) स्कन्ध के देश, (३) उस (स्कन्ध) के प्रदेश, और (४) परमाणु-इस प्रकार रूपी अजीव द्रव्य के चार भेद हैं॥ १०॥ Non-life with form
(1) Skandh (aggregate), (2) Skandh-desh (sections of aggregate), (3) Skandh-pradesh (sub-sections of aggregate), and (4) Paramanu (ultimate particle); thus non-life with form (rupi ajiva or matter) is of four kinds. (10)
एगत्तेण पुहत्तेण, खन्धा य परमाणुणो। लोएगदेसे लोए य, भइयव्वा ते उ खेत्तओ॥
इत्तो कालविभागं तु, तेसिं वुच्छं चउव्विहं॥११॥ परमाणुओं के एकत्व (सम्मिलन) से स्कन्ध का निर्माण हो जाता है और स्कन्ध के पृथक्त्व (विभाजित होने-बिखर जाने) से परमाणु बन जाते हैं (यह स्थिति द्रव्य की अपेक्षा से बताई गई है)।
क्षेत्र की अपेक्षा से वे स्कन्ध और परमाणु लोक के एक देश में तथा संपूर्ण लोक में भाज्य हैं। अतः उनके असंख्य विकल्प (भेद) हैं।
यहाँ से आगे मैं उन स्कन्ध और परमाणुओं के काल विभाग की अपेक्षा से चार भेद कहूँगा ॥११॥
Aggregate (Skandh) is created by assimilation of Paramanus (ultimate particles) and when the aggregate disintegrates it turns into Paramanus (This is in context of substance).
In context of place those aggregates and Paramanus (ultimate particles) can be divided in one section of the universe as well as the whole. As such they have innumerable alternatives.
Now I shall describe the four divisions of those aggregates and Paramanus in context of time. (11)
संतई पप्प तेऽणाई, अपज्जवसिया वि य।
ठिई पडुच्च साईया, सपज्जवसिया वि य॥१२॥ प्रवाह (संतति) की अपेक्षा से वे स्कन्ध-परमाणु अनादि और अनन्त हैं। स्थिति (नियत स्थान पर अवस्थान) की अपेक्षा से सादि-सान्त भी हैं॥ १२॥
In context of continuity these aggregates and Paramanus are beginningless and endless. However in context of existence at a particular place they have a beginning as well as an end. (12)