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on सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
चतुस्त्रिंश अध्ययन [ 490]
Duration in realms
The aforesaid is general description of duration of soul-complexions. Now I will describe the duration of soul-complexions in the four realms of rebirth or worldly existence. (40)
दस वाससहस्साइं, काऊए ठिई जहन्निया होइ।
तिण्णुदही पलिओवम, असंखभागं च उक्कोसा॥४१॥ कापोतलेश्या की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की है और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक तीन सागर की होती है॥ ४१ ॥
The minimum duration of reddish-blue soul-complexion is ten thousand years and maximum duration is uncountable fraction of one Palyopam more than three Sagaropam. (41)
तिण्णुदही पलियम, संखभागं जहन्नेण नीलठिई।
दस उदही पलिओवम, असंखभागं च उक्कोसा॥४२॥ नीललेश्या की जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक तीन सागर और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दस सागर की है॥४२॥
The minimum duration of blue soul-complexion is uncountable fraction of one Palyopam more than three Sagaropam and maximum duration is uncountable fraction of one Palyopam more than ten Sagaropam. (42)
दस उदही पलियम, संखभागं जहन्निया होइ।।
तेत्तीससागराइं, उक्कोसा होइ किण्हाए॥४३॥ कृष्णलेश्या की जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दस सागर और उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागर की होती है॥ ४३॥
The minimum duration of blue soul-complexion is uncountable fraction of one Palyopam more than ten Sagaropam and maximum duration is uncountable fraction of one Palyopam more than thirty-three Sagaropam. (43)
एसा नेरइयाणं, लेसाण ठिई उ वणिया होइ।
तेण परं वोच्छामि, तिरिय-मणुस्साण देवाणं॥४४॥ यह नैरयिक जीवों की लेश्याओं की स्थिति का वर्णन किया गया है। इससे आगे तिर्यंच, मनुष्य और देवों की लेश्याओं की स्थिति का वर्णन करूँगा॥ ४४ ।।
This is the description of duration of soul-complexions of infernal beings. Now I will describe the duration of soul-complexions of animals, humans and divine beings. (44)
अन्तोमुत्तमद्धं, लेसाण ठिई जहिं जहिं जा उ।
तिरियाण नराणं वा, वज्जित्ता केवलं लेसं॥४५॥ केवल शुक्ललेश्या को छोड़कर (वर्जित करके) तिर्यंचों अथवा मनुष्यों की जहाँ-जहाँ, जो-जो हैं, उनकी लेश्याओं की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त काल की होती है॥ ४५ ॥