________________
[487] चतुस्त्रिंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्रता
नीयावित्ती अचवले, अमाई अकुऊहले।
विणीयविणए दन्ते, जोगवं उवहाणवं॥२७॥ जिसकी वृत्ति नम्र है, जो अचपल है, माया (कपट) से रहित है, कौतूहल नहीं करता है, विनय में विनीत है, दान्त (अपनी इन्द्रियों का दमन करने वाला) है, योगवान-उपधानवान (स्वाध्याय से समाधि सम्पन्न और विहित तप करने वाला) है- ॥ २७॥
A person, who is modest, steady, free of deceit, is not inquisitive, well behaved, sincerely humble, victor of his sense organs, has noble association and is attentive to his duties,- (27)
पियधम्मे दढधम्मे, वज्जभीरू हिएसए।
एयजोगसमाउत्तो, तेउलेसं तु परिणमे ॥२८॥ प्रियधर्मी है, दृढ़धर्मी है, पापभीरु है, हितैषी (आत्मार्थी) है-इन योगों (लक्षणों) से युक्त मानव तेजोलेश्या में परिणत होता है (परिणमन करता है)॥ २८॥
. Loves religion, is steadfastly religious, afraid of sins and strives for beatitude-a man having these symptoms (attributes and habits) is said to have been turned into one having fiery red soul-complexion. (28) .
पयणुक्कोह-माणे य, माया-लोभे य पयणुए।
__पसन्तचित्ते दन्तप्पा, जोगवं उवहाणवं ॥२९॥ जिसके क्रोध, मान, माया, लोभ पतले (मन्द) हो गये हैं, प्रशान्तचित्त है, जिसने अपनी आत्मा का दमन कर लिया है, जो योगवान और उपधानवान है (योग और उपधान करने वाला है)- ॥ २९॥
A man, whose anger, conceit, deceit and greed have become mild, who has gained mental serenity, who has subjugated his own soul, has noble association and is attentive to his duties (including study and austerities) - (29)
तहा पयणुवाई य, उवसन्ते जिइन्दिए।
एयजोगसमाउत्ते, पम्हलेसं तु परिणमे॥३०॥ जो अल्पभाषी (कम बोलने वाला) है, उपशान्त है, जितेन्द्रिय है-इन योगों (लक्षणों) से युक्त मानव पद्मलेश्या वाला होता है॥ ३०॥
Who speaks very little, is peaceful and has conquered his senses-a man having these symptoms (attributes and habits) is said to have been turned into one having yellow soul-complexion. (30)
अट्टरुद्दाणि वज्जित्ता, धम्मसुक्काणि झायए।
पसन्तचित्ते दन्तप्या, समिए गुत्ते य गुत्तिहिं॥३१॥ जो आर्त्त-रौद्र ध्यान को वर्जित करके (छोड़कर) धर्म और शुक्लध्यान ध्याता है, (एकाग्रचित्त होता है) जिसका चित्त (हृदय, मन, मस्तिष्क) प्रशांत है, जो अपनी आत्मा का दमन करता है, पाँच समितियों से समित है और तीन गुप्तियों से गुप्त है- ॥ ३१ ॥