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[485 ] चतुस्त्रिंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
(5) Sparsh dvara (touch) -
The touch of three ignoble soul-complexions is infinitely harsher than that of saw, tongue of a cow and the leaf of Shaak vegetable (akin to teak leaf). (18)
जह बूरस्स व फासो, नवणीयस्स व सिरीसकुसुमाणं।
एत्तो वि अणन्तगुणो, पसत्थलेसाण तिण्हं पि॥१९॥ बूर (एक विशेष वनस्पति), नवनीत (मक्खन) शिरीष के पुष्पों का जैसा मृदुल-कोमल स्पर्श होता है, उससे भी अनन्तगुणा कोमल स्पर्श तीन प्रशस्त (तेजस्, पद्म और शुक्ल) लेश्याओं का होता
है॥१९॥
The touch of three noble soul-complexions is infinitely more smooth and pleasant than that of Bura vegetable, cotton, butter and the flowers of Shireesh (Albizzia lebbeck Benth). (19) (६) परिणामद्वार
तिविहो व नवविहो वा, सत्तावीसइविहेक्कसीओ वा।
दुसओ तेयालो वा, लेसाणं होइ परिणामो॥२०॥ तीन (३) प्रकार का, नौ (९) प्रकार का, सत्ताईस (२७) प्रकार का, इक्यासी (८१) प्रकार का, दो सौ तेतालीस (२४३) प्रकार का लेश्याओं का परिणाम होता है॥ २०॥ (6) Parindam dvara (degree of intensity)
The degrees of intensity (Parinaam) of soul-complexions can be of three, nine, twenty-seven, eighty-one and two hundred forty-three types. (20) (७) लक्षणद्वार
पंचासवप्पवत्तो, तीहिं अगुत्तो छसुंअविरओ य।
तिव्वारम्भपरिणओ, खुद्दो साहसिओ नरो॥२१॥ ___ जो मानव पाँच प्रकार के आस्रवों में प्रवृत्त है, तीन गुप्तियों से अगुप्त है (मन-वचन-काय का गोपन नहीं करता), छह काया के जीवों (की हिंसा) से अविरत है, तीव्र आरम्भ (हिंसा आदि) में परिणत-रचा-पचा है, क्षुद्र है, साहसिक (दुःसाहसी-बुरे कामों को करने में निडर) है- ॥ २१॥ (7) Lakshan dvara (symptom)
A man, who is engaged in drawing five kinds of inflow of karmas, is not employing three restraints (of mind, speech and body), does not refrain from violence towards six classes of bodied beings, indulges in intensely sinful activities, indulges brazenly in wicked activity,-(21)
निद्धन्धसपरिणामो, निस्संसो अजिइन्दिओ।
एयजोगसमाउत्तो, किण्हलेसं तु परिणमे॥२२॥ निःशंक परिणाम (परिणाम-फल के विचार से शून्य) वाला है, नृशंस (क्रूर) है, अजितेन्द्रिय (इन्द्रियों को अपने वश में न रखने वाला)-जो इन योगों (लक्षणों) से युक्त है वह कृष्णलेश्या में परिणत होता है (वह कृष्णलेश्या वाला कहलाता है) ॥ २२ ॥