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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
चतुस्त्रिंश अध्ययन [478]
चौंतीसवाँ अध्ययन : लेश्याध्ययन
पूर्वालोक
प्रस्तुत अध्ययन का नाम लेश्याध्ययन है। नाम से ही स्पष्ट है कि इसका वर्ण्य-विषय लेश्या है। लेश्या क्या है? इसका किस प्रकार का प्रभाव होता है आदि विषयों को समझना आवश्यक है। शास्त्रों में लेश्याओं को इस प्रकार परिभाषित किया गया है(१) कषाय से अनुरंजित जीव-परिणाम (भाव), (२) कषायोदय से रंजित मन-वचन-काययोगों की प्रवृत्ति, (३) कर्म के साथ आत्मा को संश्लिष्ट करके कर्मबंध की निर्माणक, (४) कर्म विधायिका। लेश्या के दो भेद हैं-(१) द्रव्य लेश्या, और (२) भाव लेश्या।
भाव लेश्या आत्मा के क्रोधादि कषायों से अनुरंजित योगों की प्रवृत्ति है तथा द्रव्य लेश्या पुद्गलों से निर्मित है। लेश्या के जो वर्ण, गन्ध, रस आदि बताये गये हैं, वे द्रव्य लेश्या से सम्बन्धित हैं।
यद्यपि यह सत्य है कि आत्मा के परिणाम (भाव, विचार, चिन्तन) पुद्गल को प्रभावित करते हैं और पुद्गल परमाणु आत्मा के भावों को।
लेकिन शास्त्रों में यह भी बताया गया है कि द्रव्य लेश्या शरीर से सम्बन्धित है; शरीर रचना करने वाले नामकर्म की शरीर-निर्माण नाम की एक उत्तर प्रकृति का सीधा सम्बन्ध द्रव्य लेश्या से बताया गया है। निष्कर्षत: यह निश्चित किया गया है कि द्रव्य लेश्या (शरीर का वर्ण आदि) जीवनभर स्थायी रहती है और भाव लेश्या आत्म-परिणामों के अनुसार परिवर्तित होती रहती है। तभी तो काले शरीर वाले व्यक्ति की शुक्ल (श्वेत वर्ण की) और श्वेतवर्णी शरीरधारी व्यक्ति की कृष्ण (काले रंग की) भाव लेश्या होना संभव है। ____ आधुनिक विज्ञान ने ऐसे कैमरों का निर्माण कर लिया है जिससे वे आत्मा के क्रोधादि कषाय रंजित परिणामों द्वारा प्रादुर्भूत रंगों का चित्र लेने में सक्षम हो सके हैं।
इस पौद्गलिक लेश्या को आचार्यों ने आणविक-आभा, प्रभा, छाया आदि नामों से निरूपित किया है। ___ लेश्या ६ हैं-कृष्ण, नील, कापोत, तेज, पद्म और शुक्ल। इनमें से प्रथम तीन अधर्म लेश्याएँ हैं और अन्तिम तीन धर्म लेश्याएँ हैं। इनके मन्दतम, मन्दतर, मन्द, तीव्र, तीव्रतर, तीव्रतम-परिणामों के अनुसार अनेक विकल्प हैं।
प्रस्तुत अध्ययन में इन छहों लेश्याओं का-(१) नामद्वार, (२) वर्णद्वार, (३) रसद्वार, (४) गन्धद्वार, (५) स्पर्शद्वार, (६) परिणामद्वार, (७) लक्षणद्वार, (८) स्थानद्वार, (९) स्थितिद्वार, (१०) गतिद्वार, और (११) आयुद्वार-इन ग्यारह द्वारों द्वारा व्यवस्थित वर्णन हुआ है।
लेश्या के लक्षण, परिणाम तथा वर्ण, गन्ध, स्पर्श आदि को दो रंगीन चित्रों द्वारा स्पष्ट करने का प्रयास किया है।
इस अध्ययन में ६१ गाथाएँ हैं।