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________________ सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र प्रथम अध्ययन [14] - विशेष स्पष्टीकरण गाथा १–“संयोग" का अर्थ आसक्तिमूलक सम्बन्ध है। वह बाह्य (परिवार तथा संपत्ति आदि) और आभ्यन्तर (विषय, कषाय आदि) के रूप में दो प्रकार का है। (सुखबोधा) । "अणगारस्स भिक्खुणो" में 'अनगार' और 'भिक्षु' दो शब्द हैं। 'अनगार' का अर्थ है-अगार (गृह) से रहित अर्थात् जो आहार या वसति आदि की प्राप्ति के लिये जाति, कुल आदि का परिचय देकर दूसरों को अपनी ओर आकृष्ट कर आत्मीय (स्वजन) नहीं बनाता है। (वृ. वृ. शान्त्याचार्य) "विनय" का एक अर्थ आचार है और दूसरा है नमन अर्थात् नम्रता। गाथा २-"आज्ञा" और "निर्देश" समानार्थक हैं। फिर भी चूर्णि के अनुसार 'आज्ञा' का अर्थ होता है-“आगम का उपदेश" और 'निर्देश' का अर्थ होता है-“आगम से अविरुद्ध गुरुवचन"। (वृ. वृ. शा.) "इंगित" और "आकार" शरीर की चेष्टा-विभिन्न मुद्राओं के वाचक हैं। किसी कार्य के विधि या निषेध के लिये सिर हिलाना आदि सूक्ष्म चेष्टा इंगित है और इधर-उधर दिशाओं को देखना, जंभाई लेना, आसन बदलना आदि स्थूल चेष्टायें (आकार) हैं। "संपन्ने" का अर्थ सम्पन्न' (युक्त) भी है और 'संप्रज्ञ' (जानने वाला) भी। वृहद् वृत्ति में दोनों अर्थ हैं। गाथा ५-चूर्णि के मतानुसार “कणकुण्डग" के दो अर्थ हैं-(१) चावलों की भूसी, और (२) चावल मिश्रित भूसी। गाथा ७-"बुद्धपुत्त नियागट्ठी" -'बुद्धपुत्र' अर्थात् आचार्य का विनीत प्रीतिपात्र शिष्य। 'नियागट्ठी'-निजकार्थी, आत्मार्थी। (सुखबोधा) गाथा १०-"चण्डालिय"- इसमें “चण्ड" (क्रोध) और 'अलीक' (असत्य) दो शब्द हैं (चूर्णि)। क्रोध के वशीभूत होकर असत्य भाषण करना तथा क्रूर व्यवहार करना 'चाण्डालिक' कर्म माना जाता है। (वृहद् वृत्ति) गाथा १२-"गलियस्स" का अर्थ है-अविनीत घोड़ा। "आकीर्ण" विनीत अश्व और बैल को कहते हैं। गाथा १८-"कृति" का अर्थ वन्दन है। जो वन्दन के योग्य हो, वह 'कृत्य' अर्थात् गुरु एवं आचार्य आदि पूज्य व्यक्ति। गाथा २६-"समर" का अर्थ-लोहार की शाला है, (चूर्णि)। लोहार की शाला तथा नाई की दुकान एवं इसी प्रकार के साधारण निम्न स्थान (वृ. वृ.) 'समर' का दूसरा अर्थ-युद्धभूमि है। (वृ. वृ.) ___ गाथा ३५-"अप्पपाण" और "अप्पबीय" में "अल्प" शब्द अभाववाची है। (वृहद् वृत्ति) गाथा ४०-"उपघात" का अर्थ है-'आचार्य' आदि को मानसिक क्लेश पहुँचाना या किसी कार्य के लिये बाध्य करना। (चूर्णि) ____ गाथा ४७-“कर्मसंपदा" के दो अर्थ हैं-साधुओं के द्वारा समाचरित, समाचारी और योगजन्य विभूतियाँ। (वृ. वृ.)
SR No.002494
Book TitleAgam 30 mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages726
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
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