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तर सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
त्रिंश अध्ययन [406]
तीसइमं अज्झयणं : तवमगगई त्रिंश अध्ययन : तपो-मार्ग-गति Chapter-30 : ENDEAVOUR ON THE
PATH OF AUSTERITY
जहा उ पावगं कम्मं, राग-दोससमज्जियं।
खवेइ तवसा भिक्खू, तमेगग्गमणो सुण॥१॥ राग और द्वेष से अर्जित पापकर्मों का भिक्षु जिस प्रकार क्षय करता है, उसे (उस प्रक्रिया को) एकाग्रचित्त होकर सुनो॥ १॥
Listen attentively to the process through which an ascetic destroys the demeritkarmas acquired due to attachment and aversion. (1)
पाणवह-मुसावाया, अदत्त-मेहुण-परिग्गहा विरओ।
राईभोयणविरओ, जीवो भवइ अणासवो॥२॥ प्राणि-वध (हिंसा), मृषावाद (असत्व), अदत्त (अदत्तादान-स्तेय), मैथुन (अब्रह्मचर्य), परिग्रह और रात्रि-भोजन की विरति से जीव अनास्रव (आस्रवरहित) होता है॥ २॥
By abstaining from violence, falsehood, stealing, sex act (non-celibacy), covetousness and food intake during night a jiva (soul/living being) becomes free from in-flux of karmas. (2)
पंचसमिओ तिगुत्तो, अकसाओ जिइन्दिओ।
अगारवो य निस्सल्लो, जीवो होइ अणासवो॥३॥ पाँच समितियों से समित और तीन गुप्तियों से गुप्त, कषायरहित, जितेन्द्रिय, गौरव-गर्व से रहित और निःशल्य जीव अनास्रव (आस्रवरहित) होता है॥ ३॥
A being circumspect with five samitis (circumspections), restrained by three guptis (restraints), passionless, victor of senses, conceit-free and free from spiritual thorns is without influx of karmas. (3)
एएसिं तु विवच्चासे, राग-द्दोससमज्जियं।
जहा खवयइ भिक्खू, तं मे एगमणो सुण॥४॥ पूर्वोक्त गुणों (धर्म साधना) से विपर्यास (विपरीत आचरण करने) पर राग-द्वेष से अर्जित कर्मों को भिक्षु जिस प्रकार क्षय करता है वह एकाग्रचित्त होकर मुझसे सुनो॥४॥
How an ascetic destroys the karmas acquired through attachment and aversion when acting contrary to the aforesaid virtues (religious practices), hear attentively from me. (4)
जहा महातलायस्स, सन्निरुद्धे जलागमे। उस्सिचणाए तवणाए, कमेणं सोसणा भवे॥५॥