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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
(कथन योग्य) साधारण दर्शन (सम्यक्त्व) पर्यवों को विशुद्ध करके वह सुलभबोधिता को प्राप्त करता है और दुर्लभबोधिता की निर्जरा करता है ।
Maxim 58 (Q). Bhante ! What does a jiva (soul / living being) obtain by discipline of speech (vachan-samadharanata)?
[393] एकोनत्रिंश अध्ययन
(A). By discipline of speech (to employ speech regularly in study of scriptures) a being perfects components of simple perception/faith that are subjects of speech. After perfecting the components of simple perception/faith (righteousness), which can be conveyed by speech, he attains ease of understanding and removes difficulty of understanding.
सूत्र ५९ -कायसमाहारणयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ?
कायसमाहारणयाए णं चरित्तपज्जवे विसोहेइ । चरित्तपज्जवे विसोहेत्ता अहक्खायचरित्तं विसोहेइ । अहक्खायचरित्तं विसोहेत्ता चत्तारि केवलिकम्मंसे खवेइ । तओ पच्छा सिज्झइ, बुज्झइ, मुच्चइ, परिनिव्वाएइ, सव्वदुक्खाणमन्तं करेइ ॥
सूत्र ५९ - ( प्रश्न) भगवन् ! काय समाधारणता से जीव को क्या प्राप्त होता है ?
(उत्तर) काय समाधारणता (संयम की शुभ प्रवृत्तियों में काया को भली-भाँति संलग्न रखना) से जीव चारित्र के पर्यवों (विविध प्रकारों) को विशुद्ध करता है । चारित्र के पर्यवों को विशुद्ध करके यथाख्यात चारित्र को विशुद्ध करता है । यथाख्यात चारित्र को विशुद्ध करके केवली कर्मांशों-वेदनीय आदि कर्मों का क्षय करता है । तत्पश्चात् सिद्ध होता है, बुद्ध होता है, मुक्त होता है, परिनिर्वाण को प्राप्त होता है, सभी दुःखों का अन्त करता है ।
Maxim 59 (Q). Bhante ! What does a jiva (soul / living being) obtain by discipline of body (kaaya-samadharanata)?
(A). By discipline of body (to properly engage body in noble activities of asceticdiscipline) a being purifies the components of conduct. After purifying the components of conduct he purifies yathaakhyata chaaritra (conduct conforming to perfect purity). Doing that he destroys the remnants of karmas clinging even to an omniscient (karmas including Vedaniya ). After that he becomes perfect (Siddha), enlightened (Buddha ), liberated (mukta), gains nirvana and ends all miseries.
सूत्र ६० - नाणसंपन्नयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ?
नाणसंपन्नयाए णं जीवे सव्वभावाहिगमं जणयई । नाणसंपन्ने णं जीवे चाउरन्ते संसारकन्तारे न विणस्सइ ॥
जहा सूई ससुत्ता, पडिया वि न विणस्स ।
तहा जीवे ससुत्ते, संसारे न विणस्सइ ॥
नाण-विणय-तव-चरित्तजोगे संपाउणइ, ससमय-परसमयसंघायणिज्जे भवइ ॥ सूत्र ६० - ( प्रश्न) भगवन् ! ज्ञान संपन्नता से जीव को क्या प्राप्त होता है ?