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[375 ] एकोनत्रिंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
(उत्तर) निन्दना (निन्दा) से पश्चात्ताप होता है और पश्चात्ताप द्वारा होने वाली विरक्ति से करणगुणश्रेणि प्राप्त करता है। करण-गुणश्रेणि प्राप्त अनगार (साधु) मोहनीय कर्म को नष्ट करता है।
Maxim 7 (Q). Bhante ! What does a jiva (soul/living being) obtain by deploring faults committed (ninda)?
(A). By deploring faults committed, a being gains feeling of remorse and through the detachment gained by remorse he arrives at the ascending scale of spiritual action (karangunashreni). The ascetic reaching this ascending scale of spiritual action destroys deluding karmas.
सूत्र ८-गरहणयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ?
गरहणयाए णं अपुरक्कारं जणयइ। अपुरक्कारगए णं जीवे अप्पसत्थेहिंतो जोगेहितो नियत्तेइ। पसत्थजोग-पडिवन्ने य णं अणगारे अणन्तघाइपज्जवे खवेइ॥
सूत्र ८-(प्रश्न) भगवन् ! गर्दा-गर्हणा (दूसरे के सामने दोषों का प्रकाशन) से जीव क्या प्राप्त करता है? '
(उत्तर) गर्दा (गर्हणा) से जीव को अपुरस्कार (गौरव का अभाव) प्राप्त होता है। अपुरस्कृत होने से जीव अप्रशस्त योगों (कार्यों) से निवृत्त होता है (प्रशस्त योगों-कार्यों से युक्त होता है)। प्रशस्त योगों से प्रतिपन्न अनगार आत्मा के गुणों का घात करने वाले (ज्ञानावरण, मोहनीय आदि) कर्मों की अनन्त पर्यायों को क्षय करता है।
Maxim 8 (Q). Bhante! What does a jiva (soul/living being) obtain by censuring (before others) faults committed (garha)? • (A). By censuring faults committed a being obtains humility. Through this humility he avoids ignoble associations (and embraces noble associations). An ascetic embracing noble associations (activities) destroys infinite modes of vitiating karmas (such as knowledge-obstructing and deluding karmas).
सूत्र ९-सामाइए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? सामाइएणं सावज्जजोगविरई जणयइ॥ सूत्र ९-(प्रश्न) भगवन् ! सामायिक (समभाव) से जीव को क्या उपलब्धि प्राप्त होती है? (उत्तर) सामायिक द्वारा जीव सावद्ययोगों (पापकारी प्रवृत्तियों) से विरति को प्राप्त करता है।
Maxim 9 (Q). Bhante! What does a jiva (soul/living being) gain by practice of equanimity (samayik)?
(A). By practice of equanimity soul gains apathy for sinful activities. सूत्र १०-चउव्वीसत्थएणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? चउव्वीसत्थएणं दंसणविसोहिं जणयइ॥ सूत्र १०-(प्रश्न) भगवन् ! चतुर्विंशति-स्तव से जीव को क्या (लाभ) प्राप्त होता है? (उत्तर) चतुर्विंशति-स्तव (चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति-स्तवन) से जीव दर्शनविशुद्धि प्राप्त करता है।