SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 497
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [351] अष्टाविंश अध्ययन सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र || अट्ठाईसवाँ अध्ययन : मोक्ष-मार्ग-गति | पूर्वालोक प्रस्तुत अध्ययन का नाम मोक्ष-मार्ग-गति है। निर्ग्रन्थ श्रमण के लिए मोक्ष साध्य है-प्राप्य है; उस प्राप्य की प्राप्ति के लिए सम्यक्ज्ञान-दर्शनचारित्र-तप समन्वित रूप से मार्ग-उपाय है और साध्य की ओर गति साधक का पुरुषार्थ-पराक्रम है। साध्य की प्राप्ति के लिए साधनों का आलम्बन अनिवार्य है। साध्य अथवा प्राप्तव्य को जान लिया जाये किन्तु उसकी प्राप्ति के साधनों का अवलम्बन न लिया जाय तो साध्य की प्राप्ति नहीं हो सकती। साधन भी उपलब्ध हो जायें फिर भी साध्य की ओर साधक गति न करे, परिश्रम व पुरुषार्थ न करे तो भी उसके लिए साध्य की प्राप्ति असम्भव ही है। इसलिए मोक्ष-प्राप्ति हेतु साधन और उन साधनों में पराक्रम आवश्यक है। मोक्ष-प्राप्ति के चार साधन हैं-ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप। इनमें प्रथम साधन ज्ञान-सम्यक्ज्ञान है। ज्ञान से ही आत्मा जिनकथित तत्त्वों-पुद्गल कर्म तथा आत्मा को जानता है, छह द्रव्यों के स्वरूप से परिचित होता है, उन्हें समझता है। ___दर्शन.से ज्ञान द्वारा जाने हुए नौ तत्त्वों-(१) जीव, (२) अजीव, (३) पुण्य, (४) पाप, (५) आसव, (६) संवर, (७) बन्ध, (८) निर्जरा, और (९) मोक्ष-इन पर श्रद्धा-अटूट और निश्चल विश्वास करता है। श्रद्धा की सहयोगिनी दश प्रकार की रुचियाँ हैं, जो सम्यक्त्व-सम्यग्दर्शन को पुष्ट करती हैं। रागादि विभावों, विषयों, कषाओं का निग्रह सम्यक्चारित्र है जो कर्मों से आत्मा को रिक्त करता है। "चयरित्तकरं चारित्तं।" आत्मोन्मुखी तपनरूप क्रिया तप है जो पूर्व संचित कर्मों को जलाकर एकदेश से भस्म कर देता है। करोड़ों जन्मों के संचित कर्म समूह की निर्जरा कर देता है। सम्पूर्ण कर्मों का क्षय होने पर साधक को मुक्ति प्राप्त होती है और तब उसके समस्त आत्म-गुणों का पूर्ण विकास (निर्वाण) होता है। ___इस सम्पूर्ण निरूपण का आधार व्यवहार की अपेक्षा से है। निश्चय अथवा वास्तविक दृष्टि से विचार करने पर तो आत्मा के शुद्ध स्वभाव की दृढ़ प्रतीति ही सम्यग्दर्शन है, आत्मा के शुद्ध स्वरूप का बोध ही सम्यक्ज्ञान है और आत्म-स्वरूप में लीनता ही सम्यक्चारित्र है और यही मोक्ष-मार्ग-गति है। प्रस्तुत अध्ययन की प्रथम १४ गाथाओं में सम्यक्ज्ञान का, १५ से ३१ गाथाओं में सम्यक्दर्शन का, ३२-३३ दो गाथाओं में सम्यक्चारित्र का, ३४वीं गाथा में सम्यक्तप का और ३५वीं गाथा में चारों ही साधनों की उपयोगिता का वर्णन किया गया है। इस प्रकार इस अध्ययन में साधक को मोक्ष-प्राप्ति की प्रक्रिया बताई गई है। प्रस्तुत अध्ययन में ३६ गाथाएँ हैं।
SR No.002494
Book TitleAgam 30 mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages726
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy