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an सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
सप्तविंश अध्ययन [350]
अविनीत शिष्यों से खिन्न होकर धर्मयान के सारथी गार्याचार्य सोचते हैं-मुझे इन दुष्ट शिष्यों से क्या लाभ है? इनसे तो मेरी आत्मा अवसन्न-व्याकुल ही होती है॥ १५॥
Distressed by immodest disciples, Gargyacharya, the driver of the religious chariot, thinks-What benefit do I have from such wicked disciples? They simply are a detriment to my soul. (15)
जारिसा मम सीसाउ, तारिसा गलिगद्दहा।
गलिगद्दहे चइत्ताणं, दढं परिगिण्हइ तवं॥१६॥ जैसे गलि गर्दभ आलसी निकम्मे गधे होते हैं, वैसे ही ये मेरे शिष्य हैं। यह सोचकर गार्याचार्य ने उन गलि-गर्दभरूप शिष्यों को छोड़ दिया और दृढ़ तपश्चरण स्वीकार किया ॥ १६ ॥
As the donkeys of street are lazy and useless, so are these disciples of mine. Thinking thus Gargyacharya abandoned all those aforesaid disciples and accepted life of rigorous austerities. (16)
मिउ-मद्दवसंपन्ने, गम्भीरे सुसमाहिए। विहरइ महिं महप्पा, सीलभूएण अप्पणा॥१७॥
-त्ति बेमि। मृदु और मार्दव गुण से संपन्न, गम्भीर, सम्यक् समाधि में लीन अपने चारित्रमय आत्मा से युक्त होकर वे महात्मा गार्याचार्य पृथ्वी पर विचरण करने लगे॥ १७ ॥
-ऐसा मैं कहता हूँ। Endowed with virtues of amity and compassion, indulgent in serene and profound contemplation Gargyacharya, the great soul enriched with right conduct, commenced his itinerant life on this earth. (17)
-So I say:
विशेष स्पष्टीकरण गाथा १-"गणधर" शब्द के अर्थ दो होते हैं-(१) तीर्थंकर भगवान के प्रमुख शिष्य, जैसे कि भगवान महावीर के गौतम आदि गणधर। (२) अनुपम ज्ञान आदि गुणों के धारक आचार्य। यहाँ पर दूसरा अर्थ ही अभीष्ट है। (वृ. वृ. शान्त्याचार्य)
कर्मोदय से अथवा शिष्यों द्वारा तोड़ी गई ज्ञानादि रूप भावसमाधि का पुनः अपने आप में जोड़ना, प्रतिसन्धान है। (वृहद्वृत्ति)
IMPORTANT NOTES
Verse 1-The term Ganadhar has two meanings-1. a chief disciple of a Tirthankar, like Bhagavan Mahavir's chief disciples including Gautam Ganadhar; 2. an acharya (preceptor; head of a religious organization) endowed with extraordinary virtues including knowledge. Here the second meaning is relevant. (V.V. of Shantyacharya)
Pratisandhan is to regain the inner serenity in the form of contemplation, disturbed by fruition of karmas or unruly disciples.