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________________ [345] सप्तविंश अध्ययन सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र सत्ताईसवाँ अध्ययन : खलुंकीय पूर्वालोक प्रस्तुत अध्ययन का नाम खलुंकीय है। 'खलुंक' शब्द का अर्थ-दुष्ट बैल, दंशमशक (कष्टदायक), जलौका (गुरु-दोषदर्शी), वृश्चिक (बिच्छू वचनरूपी डंक से पीड़ित करने वाले) आदि हैं। शारपेण्टियर के मतानुसार यह शब्द (खलुंक) खल से सम्बन्धित रहा हो, 'खल' का अर्थ ही वक्र और दुष्ट है। 'खल' का यह अर्थ आज भी प्रचलित है। अनुमानतः यह शब्द (खलुंक) खलौक्ष का निकटवर्ती रहा है। जैसे खल विहग दुष्ट पक्षी के लिए प्रयुक्त होता है, उसी प्रकार खल-उक्ष दुष्ट बैल के लिए प्रयुक्त हुआ हो। प्रस्तुत अध्ययन में खलुक शब्द दुष्ट बैल के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है तथा उसकी उपमा उद्दण्ड और अविनीत शिष्य से दी गई है। साथ ही ऐसे शिष्य की दुर्विनीतता, वक्रता, उच्छृखलता और उद्दण्डता का चित्रण किया गया है। साधक जीवन के दो महत्वपूर्ण अनिवार्य अंग हैं-विनय और अनुशासन। जिस साधक के जीवन में ये दोनों अथवा दोनों में से एक भी नहीं होता; वह स्वच्छन्द होकर साधक-जीवन से भ्रष्ट हो जाता है। __ जिस प्रकार दुष्ट बैल शकट (गाड़ी), जूआ तथा समिला को तोड़कर मालिक (गाड़ीवान) को दु:खी और पीड़ित करता है, उसी प्रकार दुष्ट शिष्य धर्मशकट (धर्मसंघ) को तोड़कर आचार्यअनुशास्ता को दु:खी व पीड़ित करता है, उनकी चित्त समाधि और शांति को भंग कर देता है। शिष्य और सहयोगियों का कर्त्तव्य होता है कि वे सुख-साता पहुँचाये, धर्मसाधना में सहयोगी बने; किन्तु घोर स्वार्थी और धृष्ट एवं दुष्ट प्रकृति वाले मानव एवं शिष्य इसके विपरीत आचरण ही करते हैं; वे चित्त-पीड़क एवं दुःखदायक होते हैं। गार्याचार्य अपने समय के विशिष्ट तत्त्ववेत्ता थे। वे स्थविर और अनुपम ज्ञान के धारक थे। वे संयम के गुणों से विभूषित थे। किन्तु, दुर्भाग्य से उनके सभी शिष्य उद्दण्ड, अविनीत, उच्छृखल और अनुशासनविहीन थे। आचार्य ने उनको सुधारने का बहुत प्रयास किया; बहुत समय तक उनकी उद्दण्डताओं को सहन कियाः किन्त उनके सधार की जब कोई आशा शेष न रही तब एक दिन आत्मभाव से प्रेरित हो, वे अपने सभी शिष्यों को छोड़कर अकेले ही चल दिये।। ____ आत्म-समाधि के इच्छुक श्रमण का यही कर्त्तव्य है कि यदि समूह (शिष्य-वर्ग, साथी श्रमण, भक्त-श्रावकों. दष्ट व्यक्तियों आदि) से आत्मसाधना-समाधि भंग होती हो और यदि कोई निपण प्रज्ञावान साथी या सहायक न मिले तो संयम की रक्षा करता हुआ मुनि एकाकी रहकर धर्म-साधना करे। यही गार्याचार्य ने किया और यही इस अध्ययन की प्रेरणा है। प्रस्तुत अध्ययन में १७ गाथाएँ हैं।
SR No.002494
Book TitleAgam 30 mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages726
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
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