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[343 ] षड्विंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र in
After thus concluding meditation and paying homage to the guru he should resolve to observe the desired austerity and then sing panegyrics for perfected souls (Siddhas). (52)
एसा सामायारी, समासेण वियाहिया। जं चरित्ता बहू जीवा, तिण्णा संसारसागरं॥५३॥
-त्ति बेमि। यह सामाचारी संक्षेप में कही गई है। इसका आचरण कर बहुत से जीव संसार-सागर को तैर गये हैं॥ ५३॥
-ऐसा मैं कहता हूँ।
This Samaachaari has been mentioned in brief. Practicing it, many souls have gone across the ocean of worldly existence. (53)
-So I say.
विशेष स्पष्टीकरण
गाथा १३-१६-"पुरुष" शब्द से “पौरुषी" शब्द का निर्माण हुआ। पुरुष के द्वारा जिस काल का माप हो, वह पौरुषी, अर्थात् प्रहर है। पुरुष शब्द के दो अर्थ हैं-पुरुष शरीर और शंकु। शंकु २४ अंगुल प्रमाण एक नाप होता है। पैर से जानु (घुटने) तक का प्रमाण भी २४ अंगुल ही होता है। जिस दिन किसी भी वस्तु की छाया वस्तु के प्रमाण के अनुसार होती है, वह दिन दक्षिणायन का प्रथम दिन होता है, युग के प्रथम वर्ष (सूर्यवर्ष) के श्रावण कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को शंकु एवं जानु की छाया अपने ही प्रमाण के अनुसार २४ अंगुल पड़ती है। १२ अंगुल का एक पाद-पैर होने से शंकु एवं जानु की २४ अंगुल छाया को दो पाद माना है।
एक वर्ष में दो अयन होते हैं-दक्षिणायन और उत्तरायन। दक्षिणायन श्रावण मास में प्रारम्भ होता है और उत्तरायन माघ मास में। दक्षिणायन में छाया बढ़ती है और उत्तरायन में घटती है।
गाथा १९-२०-रात्रि के चार भाग होते हैं-(१) प्रादोषिक अर्थात् रात्रि का मुख भाग, (२) अर्धरात्रिक, (३) वैरात्रिक, और (४) प्राभातिक। प्रादोषिक और प्राभातिक इन दो प्रहरों में स्वाध्याय किया जाता है। अर्ध-रात्रि में ध्यान और वैरात्रिक में शयनक्रिया-निद्रा। (ओघ नि., गा. ६५८)