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[339] षड्विंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
वे छह कारण हैं-(१) क्षुधावेदना की शांति के लिए, (२) वैयावृत्य के लिए, (३) ईर्या समिति के पालन के लिए, (४) संयम पालन के लिए, (५) प्राणों की रक्षा के लिए, और (६) धर्मचिन्तन के लिए ॥ ३३॥
The six reasons are-1. In order to pacify the pain of hunger, 2. In order to serve fellow ascetics, 3. In order to observe movement related circumspection (irya samiti), (4) In order to observe self-control, (5) In order to save his own life, 6. In order to perform religious contemplation. (33)
निग्गन्थो धिइमन्तो, निग्गन्थी वि न करेज्ज छहिं चेव।
ठाणेहिं उ इमेहिं, अणइक्कमणां य से होइ॥ ३४॥ धृतिमान निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थिनी इन (आगे कहे जाने वाले) छह कारणों से (आहार-पानी की गवेषणा) न करे तो ही (संयम का) अतिक्रमण नहीं होता ॥ ३४ ॥
If a devout ascetic (male or female) does not explore for food and water for (following) six reasons, then it is not considered transgression (of asceticdiscipline). (34)
आयंके उवसग्गे, तितिक्खया बम्भचेरगुत्तीसु।
पाणिदया तवहेडं, सरीर-वोच्छेयणट्ठाए॥३५॥ (१) आतंक रोग उत्पन्न होने पर, (२) उपसर्ग आने पर, (३) ब्रह्मचर्य गुप्ति की रक्षा के लिए, (४) प्राणियों की दया के लिए, (५) तप के लिए, और (६) शरीर-व्युच्छेद के लिए। (इन कारणों के समुपस्थित होने पर साधु-साध्वीवर्ग भक्त-पान की गवेषणा न करे।) ॥ ३५॥
1. Due to serious ailment, 2. due to other afflictions, 3. for protection of vow of celibacy, 4. to facilitate compassion for living beings, 5. to facilitate austerities, and 6. to abandon earthly body. (35)
अवसेसं भण्डगं गिज्झा, चक्खुसा पडिलेहए।
परमद्धजोयणाओ, विहारं विहरए मुणी॥३६॥ सभी उपकरणों का आँखों से प्रतिलेखन करे और यदि आवश्यक हो तो उन्हें लेकर मुनि अधिक से अधिक आधे योजन (दो कोस-तीन माइल-पाँच किलोमीटर) की दूरी तक भिक्षा हेतु जाए ॥ ३६॥
He should visually inspect his whole outfit and go to seek alms up to a distance of half Yojan (five kilometers) according to the need. (36)
चउत्थीए पोरिसीए, निक्खिवित्ताण भायणं।
सज्झायं तओ कुज्जा, सव्वभावविभावणं॥ ३७॥ चतुर्थ पौरुषी
दिन के चतुर्थ प्रहर में भली-भाँति प्रतिलेखना कर सभी पात्रों को बाँधकर रख दे। तदुपरान्त सभी भावों-तत्त्वों का प्रकाशक स्वाध्याय करे॥ ३७॥