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________________ सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र षड्विंश अध्ययन [328] ॥ छब्बीसवाँ अध्ययन : सामाचारी पूर्वालोक प्रस्तुत अध्ययन का नाम सामाचारी है। सामाचारी का अर्थ होता है-'सम्यक् आचार व्यवस्था' अर्थात् साधु के समस्त आचार, पारस्परिक कर्त्तव्य और व्यवहार। इनसे संबंधित नियमोपनियमों काव्यवस्थाओं का प्रस्तुत अध्ययन में वर्णन हुआ है। ___संघ को सुव्यवस्थित रखने के लिए समुचित व्यवहार होना आवश्यक है। न तो दूसरों के प्रति उदासीनता, रूक्षता, उपेक्षा, अनुत्तरदायिता ही होनी चाहिए और न अत्यधिक आसक्ति ही। किसी के प्रति लगाव और किसी के प्रति लापरवाही भी विखण्डन का कारण बन सकती है। उच्छृखलता, निष्प्रयोजन आवागमन, हठाग्रह आदि भी संघ व्यवस्था को विशंखलित करते हैं। ___इन्हीं कारणों से श्रमण के आचार के दो रूप बताये गये हैं-व्रतात्मक आचार और व्यवहारात्मक आचार। सामाचारी के भी दो प्रकार हैं-(१) ओघ सामाचारी, (२) पद-विभाग सामाचारी। प्रस्तुत अध्ययन में दोनों प्रकार की सामाचारी का वर्णन है। सामाचारी के दस भेद हैं-(१) आवश्यकी, (२) नैषेधिकी, (३) आपृच्छना, (४) प्रतिपृच्छना, (५) छन्दना, (६) इच्छाकार, (७) मिथ्याकार, (८) तथाकार, (९) अभ्युत्थान, और (१०) उपसम्पदा (इसे आसेवना-शिक्षा भी कहते हैं)। इन सभी का सर्वांगपूर्ण वर्णन प्रस्तुत अध्ययन में किया गया है। तदुपरान्त दिन और रात की औत्सर्गिक चर्या का वर्णन है। दिन और रात्रि के आठ प्रहर होते हैं। दिन के चार प्रहर और रात्रि के भी चार प्रहर। दिन के प्रथम प्रहर में स्वाध्याय, दूसरे में ध्यान, तीसरे में भिक्षाचर्या और चौथे में स्वाध्याय। इसी प्रकार रात्रि के प्रथम प्रहर में स्वाध्याय, दूसरे में ध्यान, तीसरे में शयन-निद्रा और चौथे में स्वाध्याय। इस प्रकार दिन-रात के आठ प्रहरों में चार प्रहर स्वाध्याय के लिए, दो प्रहर ध्यान के लिये, एक प्रहर भिक्षाचर्या आदि शारीरिक कार्यों के लिए तथा एक प्रहर निद्रा के लिए नियत है। ___सामाचारी की यह विशेषता है कि यह सामाजिक तथा पारिवारिक बंधनों के समान नहीं है अपितु इसका स्वेच्छया स्वीकरण होता है। यह तो अन्तर्हदय का वह उत्स है जो सहजतया प्रवाहित होकर साधक-जीवन की आध्यात्मिक प्रगति में सहायक बनता है। साथ ही उसकी व्यवहारकुशलता भी बढ़ाता है। साधक के जीवन को संपूर्णता, सरलता, सहजता प्रदान करता है। प्रस्तुत अध्ययन में ५३ गाथाएँ हैं।
SR No.002494
Book TitleAgam 30 mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages726
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
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