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[7] प्रथम अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र in
A disciple should not sit touching the venerable acharya or other seniors to their right, left, front or back. He should also not sit touching their thighs with his own. He should avoid hearing their call reclining or sitting in his own bed. (18)
नेव पल्हत्थियं कुज्जा, पक्खपिण्डं व संजए।
पाए पसारिए वावि, न चिट्ठे गुरुणन्तिए॥१९॥ संयमी साधु गुरु के सामने पालथी लगाकर न बैठे और न दोनों भुजाओं से घुटनों को बाँधकर बैठे तथा अविनयपूर्वक पाँव पसारकर भी नहीं बैठे॥ १९॥ (चित्र देखें)
In presence of the guru a disciplined ascetic should not sit cross-legged or embracing folded legs to his chest. He should also not sit immodestly stretching his legs full length. (19)
__ आयरिएहिं वाहिन्तो, तुसिणीओ न कयाइ वि।
.. पसाय-पेही नियागट्ठी, उवचिट्ठे गुरुं सया॥२०॥ . मोक्षार्थी तथा गुरुकृपाकांक्षी विनीत शिष्य आचार्य (गुरु) द्वारा बुलाये जाने पर चुप बैठा देखता न रहे किन्तु तुरन्त गुरु के समक्ष उपस्थित हो जाये ॥ २०॥
A modest disciple, seeking guru's favour and salvation, should never ignore guru's call; he should respond at once and approach him. (20)
आलवन्ते लवन्ते वा, न निसीएज्ज कयाइ वि।
चइऊणमासणं धीरो, जओ जत्तं पडिस्सुणे॥२१॥ गुरु के द्वारा एक बार अथवा बार-बार बुलाये जाने पर धैर्यशाली बुद्धिमान शिष्य बैठा न रहे; तुरन्त आसन छोड़कर यतनापूर्वक गुरु के समक्ष उपस्थित होकर उनके आदेश को स्वीकार करे ॥२१॥
Irrespective of the guru calling once or repeatedly a patient and intelligent disciple should not keep sitting. He should at once leave his seat, go to the guru with due care and accept his command. (21)
आसण-गओन पुच्छेज्जा, नेव सेज्जा-गओ कया।
आगम्मुक्कुडुओ सन्तो, पुच्छेज्जा पंजलीउडो॥ २२॥ शिष्य अपने आसन अथवा शय्या पर बैठा हुआ गुरु से कोई बात न पूछे अपितु गुरु के समीप आकर और उकडू आसन से बैठकर तथा विनयपूर्वक अंजलिबद्ध होकर पूछे॥ २२ ॥ (देखें प्रश्न-मुद्रा चित्र)
A disciple should never ask any question to the guru while sitting on his seat or reclining on his bed; instead he should approach the guru, squat before him, join his palms and put forth his question modestly. (22)
एवं विणय-जुत्तस्स, सुत्तं अत्थं च तदुभयं ।
पुच्छमाणस्स सीसस्स, वागरेज्ज जहासुयं ॥२३॥ ___ विनयी शिष्य के इस प्रकार, विनय से परिपूर्ण शब्दों द्वारा पूछे जाने पर गुरु भी सूत्र, अर्थ और दोनों का जैसा उन्होंने जाना-सुना हो, वैसा ही यथार्थ प्ररूपण करे ॥ २३॥