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[291] त्रयोविंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
पुच्छामि ते महाभाग !, केसी गोयममब्बवी।
- तओ केसिं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ॥२१॥ केशी ने गौतम से कहा-हे महाभाग! मैं आपसे कुछ पूछना चाहता हूँ। केशी के यह कहने पर गौतम ने कहा- ॥ २१॥
Keshi said to Gautam-0 august one! I want to ask you something. When Keshi said thus,Gautam responded- (21)
पुच्छ भन्ते! जहिच्छं ते, केसिं गोयममब्बवी।
तओ केसी अणुन्नाए, गोयमं इणमब्बवी॥२२॥ भंते! आपकी जैसी इच्छा हो, पूछिए। तब अनुमति पाकर केशी ने गौतम से इस प्रकार कहा-॥२२॥
Bhante! Please go ahead and ask whatever you like. After getting consent, Keshi said to Gautam- (22)
चाउज्जामो य जो धम्मो, जो इमो पंचसिक्खिओ।
देसिओ वद्धमाणेण, पासेण य महामुणी॥२३॥ (केशीकुमार श्रमण-) यह जो चातुर्याम धर्म है जिसका उपदेश भगवान पार्श्वनाथ ने दिया है और यह पंचशिक्षा (पंचमहाव्रत) रूप धर्म भगवान वर्द्धमान द्वारा उपदिष्ट है॥ २३ ॥
(Kumar-shraman Keshi-) Great sage Parshvanaath has propagated this religion of four dimensions (great vows) and great sage Mahavir has propagated this religion of five edicts (great vows). (23)
एगकज्जपवन्नाणं, विसेसे किं नु कारणं?
धम्मे दुविहे मेहावि!, कहं विप्पच्चओ न ते ?॥२४॥ हे मेधावी ! एक ही कार्य-लक्ष्य में प्रवृत्त हुए हैं तो इस विशेषता-भिन्नता का क्या कारण है? इन दो प्रकार के धर्मों में आपको संदेह (विप्रत्यय) क्यों नहीं होता? ॥ २४॥
O prudent one! When both religions (doctrines) pursue the same goal, why this difference? Why you have no misgivings about this duality of doctrine ? (24)
तओ केसिं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी।
पन्ना समिक्खए धम्म, तत्तं तत्तविणिच्छयं ॥ २५॥ (गौतम गणधर) केशी के ऐसा कहने पर गौतम ने कहा-तत्त्व का विनिश्चय सम्यक् निर्णय करने वाली प्रज्ञा द्वारा ही धर्मतत्त्व की समीक्षा की जाती है॥ २५ ॥
When Keshi asked thus, Gautam explained-It is through discerning prudence that religious fundamentals are adjudged and ascertained. (25)
पुरिमा उज्जुजडा उ, वंकजडा य पच्छिमा। मज्झिमा उज्जुपन्ना य, तेण धम्मे दुहा कए॥२६॥