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ती सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
त्रयोविंश अध्ययन [290]
Well versed with proper courteous behaviour and considering Keshi's school to be senior than his, Gautam went to Tinduk garden along with his disciples. (15)
केसीकुमार-समणे, गोयमं दिस्समागयं।
पडिरूवं पडिवत्तिं, सम्म संपडिवज्जई॥१६॥ गौतम को आते हुए देखकर केशीकुमार श्रमण ने सम्यक् प्रकार से उनके अनुरूप आदर-सत्कार किया॥१६॥
When Keshi saw him coming, he greeted Gautam with appropriate honour due to him. (16)
पलालं फासुयं तत्थ, पंचमं कुसतणाणि य।
गोयमस्स निसेज्जाए, खिप्पं संपणामए॥१७॥ गौतम को बैठने के लिए शीघ्र ही उन्होंने प्रासुक पयाल (ब्रीहि आदि चार धानों के घास) और पाँचवाँ कुश-तृण दिया॥ १७॥
Without any delay he offered Gautam seats made of faultless (free of living organism) palaal (four kinds of straw, namely Sali, Brihika, Kodrava and Ralak) and also a fifth kind, Kush. (17)
केसीकुमार-समणे, गोयमे य महायसे।
उभओ निसण्णा सोहन्ति, चन्द-सूर-समप्पभा॥१८॥ वहाँ बैठे हुए केशीकुमार श्रमण और महायशस्वी गौतम-दोनों चन्द्र और सूर्य के समान सुशोभित हो रहे थे॥ १८॥
Sitting there, Kumar-shraman Keshi and renowned Gautam looked scintillating like the moon and the sun. (18)
समागया बहू तत्थ, पासण्डा कोउगा मिगा।
गिहत्थाणं अणेगाओ, साहस्सीओ समागया॥१९॥ कौतूहल की दृष्टि वाले अन्य सम्प्रदायों के परिव्राजक (पाषण्ड) तथा अनेक सहस्र श्रावक भी आ गये ॥ १९॥
Monks of other creeds as well as thousands of lay householders also came out of curiosity and assembled there. (19)
देव-दाणव-गन्धव्वा, जक्ख-रक्खस-किन्नरा।
अदिस्साणं च भूयाणं, आसी तत्थ समागमो॥२०॥ देव-दानव-गन्धर्व, यक्ष-राक्षस-किन्नर तथा अन्य अदृश्य भूतों का वहाँ मेला-सा लग गया था॥ २०॥
Divine beings such as devas, danavas, gandharvas, yakshas, raakshasas and kinnaras as well as invisible ghosts too flocked there. (20)